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Wednesday, 31 December 2008
Wednesday, 5 November 2008
बीबी के चेहरे पर इतने मुहाँसे, कि पति ने तलाक ले लिया
मुंबई में एक पति को अपनी बीवी के चेहरे के मुँहासों से इतनी नफरत हुई कि उसने पत्नी से ही तलाक ले लिया। भले ही उसे हर्जाने के तौर पर ढाई लाख रुपये चुकाने पड़े। हुया यह कि सीमा (बदला हुआ नाम) के पति ने कोर्ट में अर्जी दायर कर कहा कि उसकी पत्नी के चेहरे पर मुँहासों के दाग हैं। इन दागों की वजह से वह अपनी पत्नी के साथ हनीमून का आनंद नहीं ले सका। अश्विन ने कहा कि उसकी पत्नी को यह त्वचा संबंधी बीमारी बचपन से थी, लेकिन शादी के समय ससुरालवालों ने इस बात को छुपाया।
हनीमून के बाद सीमा से कहा गया कि तुम अपने मायके जाकर अपने डॉक्टर की सलाह ले। इसके एक महीने बाद सीमा अपने मायके लौट गई। उस वक्त पति ने उसे विश्वास दिलाया था कि जब वह ठीक हो जाएगी, तो वह उसे फिर उसे बुला लेगा। मई 1998 में सीमा ने अपने पति को फोन किया और धमकी दी कि अगर उसने उसे अपने पास नहीं बुलाया तो वह खुदकुशी कर लेगी। इसी बीच सीमा ने थाने में जाकर ससुराल वालों पर दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाया। जब मामला मुंबई की पारिवारिक अदालत पहुंचा तो अदालत ने सीमा के डॉक्टर को अदालत में पेश होने के लिए कहा। सीमा के डॉक्टर ने कहा कि इस बीमारी का उपचार है और यह ठीक हो सकती है। साथ ही उसने कोर्ट से कहा कि इसके चलते शारीरिक सम्बन्ध बनाने में कोई दिक्कत नहीं होगी। पर अदालत ने डॉक्टर की दलील को नकार दिया।
6 साल तक कोर्ट में मामला चलने के बाद दोनों पक्ष तलाक के लिए तैयार हो गए। सीमा को अपने पति के खिलाफ कोर्ट में दायर सभी केस को वापस लेने के लिए 2.50 लाख रुपये हर्जाना भी दिया गया।
हनीमून के बाद सीमा से कहा गया कि तुम अपने मायके जाकर अपने डॉक्टर की सलाह ले। इसके एक महीने बाद सीमा अपने मायके लौट गई। उस वक्त पति ने उसे विश्वास दिलाया था कि जब वह ठीक हो जाएगी, तो वह उसे फिर उसे बुला लेगा। मई 1998 में सीमा ने अपने पति को फोन किया और धमकी दी कि अगर उसने उसे अपने पास नहीं बुलाया तो वह खुदकुशी कर लेगी। इसी बीच सीमा ने थाने में जाकर ससुराल वालों पर दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाया। जब मामला मुंबई की पारिवारिक अदालत पहुंचा तो अदालत ने सीमा के डॉक्टर को अदालत में पेश होने के लिए कहा। सीमा के डॉक्टर ने कहा कि इस बीमारी का उपचार है और यह ठीक हो सकती है। साथ ही उसने कोर्ट से कहा कि इसके चलते शारीरिक सम्बन्ध बनाने में कोई दिक्कत नहीं होगी। पर अदालत ने डॉक्टर की दलील को नकार दिया।
6 साल तक कोर्ट में मामला चलने के बाद दोनों पक्ष तलाक के लिए तैयार हो गए। सीमा को अपने पति के खिलाफ कोर्ट में दायर सभी केस को वापस लेने के लिए 2.50 लाख रुपये हर्जाना भी दिया गया।
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Sunday, 19 October 2008
शेयर बाजार में 30 लाख रुपए लुटा बैठी, पति ने तलाक देने का फैसला लिया
एक महिला को उसके पति ने तलाक देने का इसलिए फैसला कर लिया क्योंकि वह शेयर बाजार में 30 लाख रुपए लुटा बैठी। लगता है कि आर्थिक मंदी की छाया शेयर बाजार से निकलकर घर की चारदीवारी में पसर गई है। अहमदाबाद के मनोविज्ञानी डॉ . हंसल भचेच की ऑनलाइन कंसल्टेंसी में इस महिला ने अपना दिल का हाल बयां किया है। वह एक गृहणी है और खाली समय में शेयर ट्रेडिंग किया करती है। उसने बिना अपना नाम बताए लिखा है , ' मैं 34 साल की हूं और मेरी शादी को 10 साल हुए हैं। मेरी एक बेटी है जो अब बड़ी हो गई है। इसीलिए मेरे पास अब इतना समय होता है कि मैं घर बैठे कुछ काम कर सकूं। शेयर मार्केट में पैसा लगाना मुझे सबसे मुफीद लगा , सो मैं यह काम करने लगी। '
महिला आगे लिखती है , ' जब मुझे मुनाफा हुआ तो मेरे पति को भी यह बहुत अच्छा लगा। एक समय ऐसा भी था कि हमारे परिवार पर रुपयों की बरसात हुई। सारे सपने पूरे हो जाएंगे , ऐसा लगा। पर हाल के दिनों में जब शेयर मार्केट बुरी तरह गिरे , तो मुझे बहुत नुकसान हुआ। मेरे पति बहुत नाराज हुए। उन्होंने साफ कह दिया कि वह इस घाटे को नहीं उठा सकते। उन्होंने मुझे तलाक देने की धमकी भी दी है। ' डॉ . भचेच से राय मांगते हुए उस महिला ने पूछा है कि शेयर मार्केट की इस स्थिति के लिए सरकार क्या करने वाली है ?' वैसे अहमदाबाद की बहुत सी घरेलू महिलाओं ने पिछले कुछ हफ्तों में स्टॉक्स में बड़ी रकम गंवाई है। यह बात अलग है कि यह अपनी तरह का मामला है पर इसमें कोई शक नहीं कि बहुत सी महिलाएं इस समय दोहरे दर्द को झेल रही हैं। पैसे गंवाने के साथ - साथ उन्हें परिवार से भी ताने सुनने को मिल रहे हैं ,' डॉ . भचेच यह कहते हैं।
(ख़बर, विभिन्न संचार माध्यमों द्वारा)
महिला आगे लिखती है , ' जब मुझे मुनाफा हुआ तो मेरे पति को भी यह बहुत अच्छा लगा। एक समय ऐसा भी था कि हमारे परिवार पर रुपयों की बरसात हुई। सारे सपने पूरे हो जाएंगे , ऐसा लगा। पर हाल के दिनों में जब शेयर मार्केट बुरी तरह गिरे , तो मुझे बहुत नुकसान हुआ। मेरे पति बहुत नाराज हुए। उन्होंने साफ कह दिया कि वह इस घाटे को नहीं उठा सकते। उन्होंने मुझे तलाक देने की धमकी भी दी है। ' डॉ . भचेच से राय मांगते हुए उस महिला ने पूछा है कि शेयर मार्केट की इस स्थिति के लिए सरकार क्या करने वाली है ?' वैसे अहमदाबाद की बहुत सी घरेलू महिलाओं ने पिछले कुछ हफ्तों में स्टॉक्स में बड़ी रकम गंवाई है। यह बात अलग है कि यह अपनी तरह का मामला है पर इसमें कोई शक नहीं कि बहुत सी महिलाएं इस समय दोहरे दर्द को झेल रही हैं। पैसे गंवाने के साथ - साथ उन्हें परिवार से भी ताने सुनने को मिल रहे हैं ,' डॉ . भचेच यह कहते हैं।
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महिलाओं की पसंद हैं, पुराने ख्याल के देसी मर्द
महिलाओं को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए पुरुषों को यह दावा करने की जरूरत नहीं कि वे बहुत समानतावादी हैं और लिंग के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव नहीं मानते। सर्वे कहता है कि ज्यादातर पुरुष हकीकत में पारंपरिक बीवी चाहते हैं और औरतों को भी ऐसे पुरुषों को उपकृत करने में मजा आता है। यानी आज भी औरतें मेट्रोसेक्सुअल के बजाय देसी तेवर वाले रेट्रोसेक्सुअल युवकों को ही ज्यादा तरजीह देती हैं।
यॉर्कशर बिल्डिंग सोसाइटी में हुए शोध के मुताबिक ज्यादातर औरतें आज भी जीवनसाथी चुनते समय पुराने ख्यालों वाले, सुरक्षा का एहसास दिलाने वाले पुरुषों का चुनाव करती हैं। सर्वे के मुताबिक औरतों को ऐसे पुरुष ज्यादा पसंद हैं जो घर और बाहर परंपरागत भूमिका में रहते हैं और आक्रामक रुख अपनाते हैं। इसके बजाय घर में रहने, समझदार रवैया दिखाने वाले मेट्रोसेक्सुअल तेवर औरत को शादी के बंधन में बांधने के लिए नाकाफी होते हैं।
इसके अलावा औरतों में नौकरी का आग्रह भी काफी कम होता जा रहा है। उन्हें लगता है कि करियर बनाने के फेर में भाग-दौड़ करने से अच्छा है कि बच्चों और परिवार की देखभाल की जाए। जब पुरुषों से पूछा गया कि जीवनसाथी में सबसे महत्वपूर्ण गुण कौन सा चाहते हैं, तो ज्यादा का जवाब था कि उसे घर की देखभाल आनी चाहिए। इसमें खाना बनाना, साफ सफाई और बच्चों को अच्छे से पालने के गुण शामिल हैं।
ऐसा नहीं है कि आदमी ही इस सोच के शिकार हैं। कई औरतों को पति का सबसे बड़ा गुण मोटी कमाई ही लगता है ताकि घर चलाने और शौक पूरा करने में किसी तरह का खलल पैदा न हो। ज्यादातर महिलाओं को शुरू में अपनी भावनाएं समझने वाला और आजाद ख्यालों का मेट्रोसेक्सुअल पति चाहिए था, लेकिन फिर उन्हें लगा कि जो आदमी मुझ से ज्यादा वक्त बाथरूम और आइने के सामने गुजारता है, उससे उकताहट हो रही है। उन्हें लगा कि पारंपरिक, आक्रामक स्वभाव वाले पुरुष ही बेहतर जीवनसाथी हो सकते हैं।
मूल समाचार, उस पर आयी टिप्पणियाँ के साथ यहाँ पढ़ा जा सकता है
यॉर्कशर बिल्डिंग सोसाइटी में हुए शोध के मुताबिक ज्यादातर औरतें आज भी जीवनसाथी चुनते समय पुराने ख्यालों वाले, सुरक्षा का एहसास दिलाने वाले पुरुषों का चुनाव करती हैं। सर्वे के मुताबिक औरतों को ऐसे पुरुष ज्यादा पसंद हैं जो घर और बाहर परंपरागत भूमिका में रहते हैं और आक्रामक रुख अपनाते हैं। इसके बजाय घर में रहने, समझदार रवैया दिखाने वाले मेट्रोसेक्सुअल तेवर औरत को शादी के बंधन में बांधने के लिए नाकाफी होते हैं।
इसके अलावा औरतों में नौकरी का आग्रह भी काफी कम होता जा रहा है। उन्हें लगता है कि करियर बनाने के फेर में भाग-दौड़ करने से अच्छा है कि बच्चों और परिवार की देखभाल की जाए। जब पुरुषों से पूछा गया कि जीवनसाथी में सबसे महत्वपूर्ण गुण कौन सा चाहते हैं, तो ज्यादा का जवाब था कि उसे घर की देखभाल आनी चाहिए। इसमें खाना बनाना, साफ सफाई और बच्चों को अच्छे से पालने के गुण शामिल हैं।
ऐसा नहीं है कि आदमी ही इस सोच के शिकार हैं। कई औरतों को पति का सबसे बड़ा गुण मोटी कमाई ही लगता है ताकि घर चलाने और शौक पूरा करने में किसी तरह का खलल पैदा न हो। ज्यादातर महिलाओं को शुरू में अपनी भावनाएं समझने वाला और आजाद ख्यालों का मेट्रोसेक्सुअल पति चाहिए था, लेकिन फिर उन्हें लगा कि जो आदमी मुझ से ज्यादा वक्त बाथरूम और आइने के सामने गुजारता है, उससे उकताहट हो रही है। उन्हें लगा कि पारंपरिक, आक्रामक स्वभाव वाले पुरुष ही बेहतर जीवनसाथी हो सकते हैं।
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करवा चौथ के दिन भी महिलाएं पतियों के खिलाफ कार्रवाई पर अड़ीं
करवा चौथ के दिन जहां पत्नियां अपने पतियों की लंबी उम्र और सलामती के लिये व्रत रख रही थीं। वहीं जबलपुर के परिवार परामर्श केन्द्र में अनेक पत्नियां अपने पतियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई किये जाने के अलावा किसी प्रकार के समाधान के लिये सहमत नहीं हुई। परिवार परामर्श केन्द्र से प्राप्त जानकारी के अनुसार करवा चौथ के दिन केन्द्र में वैवाहिक विवाद के 42 मामलों की सुनवाई की गयी। केन्द्र में ऐसा पहली बार हुआ कि इन 42 मामलों में एक भी निपटारा आपसी समझौते से नहीं हो पाया।
सुनवाई के दौरान पति पीड़ित अधिकांश पत्नियां करवा चौथ होने के बावजूद परिवार परामर्श के सलाहकारों के समक्ष पतियों एवं ससुराल पक्ष के लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने के अलावा किसी प्रकार के समाधान के लिये सहमत नहीं थी। सलाहकारों की समझाइश के बावजूद 12 मामलों में विवादित परिजनों ने आपसी सहमति से अलग-अलग रहने एवं विधि अनुसार आचरण करने का निर्णय लिया। इसके साथ ही आठ पतियों द्वारा पत्नियों से पीडित होकर आवेदन प्रस्तुत किये थे। लेकिन उनकी पत्नियां दिन भर के इंतजार के बाद भी नहीं आईं। सलाहकारों ने ऐसे पतियों को न्यायालय की शरण लेने की सलाह दी।
सुनवाई के दौरान पति पीड़ित अधिकांश पत्नियां करवा चौथ होने के बावजूद परिवार परामर्श के सलाहकारों के समक्ष पतियों एवं ससुराल पक्ष के लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने के अलावा किसी प्रकार के समाधान के लिये सहमत नहीं थी। सलाहकारों की समझाइश के बावजूद 12 मामलों में विवादित परिजनों ने आपसी सहमति से अलग-अलग रहने एवं विधि अनुसार आचरण करने का निर्णय लिया। इसके साथ ही आठ पतियों द्वारा पत्नियों से पीडित होकर आवेदन प्रस्तुत किये थे। लेकिन उनकी पत्नियां दिन भर के इंतजार के बाद भी नहीं आईं। सलाहकारों ने ऐसे पतियों को न्यायालय की शरण लेने की सलाह दी।
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Tuesday, 14 October 2008
अरे वाह! अब पति भी किराए पर मिलेंगे
अभी अभी तो हमने पढ़ा था कि अब अपने देश में ही सुंदर महिला साथी भी किराए पर उपलब्ध है। वो भी 10 से 15 हजार रुपए प्रति शाम के हिसाब से। फिर उस पर टिप्पणियाँ भी देखीं कि 'पता नहीं कब पुरूष महिला के बिना जीना सीखेगे।' 'कोई खरीदे गये साथी के साथ सच्ची खुशी कैसे पा सकता है।' 'क्या युवक बिकना नहीं चाहते या युवतियों के पास अभी रुपए नहीं आये?'
इन सबका समाधान अब सामने है। बेशक बात अर्जेंटीना की है, देर-सबेर यहाँ भी वही हाल होगा। वहां जिन महिलाओं को अपने पतियों से इस बात की शिकायत रहती है कि उनके पति घर के काम में उनका हाथ नहीं बंटाते वे अपने शयनकक्ष की शांति बनाए रखते हुए किराए के पतियों की सेवाएं ले सकती हैं। इससे उन महिलाओं को काफी फायदा हो रहा है जिनके पति घर के काम में निपुण नहीं हैं या फिर रुचि नहीं लेते। जी हां, अर्जेटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में एक कंपनी महिलाओं को 15.50 डालर (करीब 760 रुपये) प्रति घंटे के हिसाब से किराए के पति उपलब्ध करा रही है। कंपनी का कहना है कि जो महिला अपने घर के काम में रुचि नहीं लेने वाले पति से परेशान है, वह किराए के पति की सेवाएं ले सकती है। अपनी वेबसाइट पर कंपनी महिलाओं को आकर्षित करने के लिए तरह-तरह के विज्ञापन भी देती है। मसलन, 'क्या आप घर के काम में हाथ नहीं बंटाने वाले अपने पति से परेशान हैं? तो, सब कुछ भूलकर हमारे पास आइए', और 'अगर आपके पति घर के काम में रुचि नहीं लेते तो सब कुछ भूलकर हमारे पास आइए'।
इस कंपनी का नाम भी बड़ा ही दिलचस्प 'हसबेंड फार रेंट' रखा गया है। कंपनी आमतौर पर अकेली, तलाकशुदा और विधवा महिलाओं को किराए का पति उपलब्ध कराती है। कंपनी द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले किराए के पतियों को बिजली और लकड़ी के काम सहित कई और काम अच्छी तरह आते हैं।
कंपनी के मालिक डेनियल अलोंसो ने बताया कि उन्हें यह अजीबोगरीब आइडिया उस दिन आया जब उनकी पड़ोसन ने अलोंसो की पत्नी से अपना पति किराए पर लेने का मजाक किया। 56 वर्षीय अलोंसो का दावा है कि उनकी कंपनी के पास अभी दो हजार ग्राहक हैं। अलोंसो ने कहा कि सस्ते में घर के काम निपट जाने के कारण महिलाओं को यह सुविधा खूब पसंद आ रही है।
ब्यूनस आयर्स में कंपनी इतनी लोकप्रिय हो चुकी है कि अब उसके पास रात के तीन बजे भी फोन कॉल आते हैं।
सम्बंधित समाचार यहाँ पढ़ा जा सकता है।
इन सबका समाधान अब सामने है। बेशक बात अर्जेंटीना की है, देर-सबेर यहाँ भी वही हाल होगा। वहां जिन महिलाओं को अपने पतियों से इस बात की शिकायत रहती है कि उनके पति घर के काम में उनका हाथ नहीं बंटाते वे अपने शयनकक्ष की शांति बनाए रखते हुए किराए के पतियों की सेवाएं ले सकती हैं। इससे उन महिलाओं को काफी फायदा हो रहा है जिनके पति घर के काम में निपुण नहीं हैं या फिर रुचि नहीं लेते। जी हां, अर्जेटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में एक कंपनी महिलाओं को 15.50 डालर (करीब 760 रुपये) प्रति घंटे के हिसाब से किराए के पति उपलब्ध करा रही है। कंपनी का कहना है कि जो महिला अपने घर के काम में रुचि नहीं लेने वाले पति से परेशान है, वह किराए के पति की सेवाएं ले सकती है। अपनी वेबसाइट पर कंपनी महिलाओं को आकर्षित करने के लिए तरह-तरह के विज्ञापन भी देती है। मसलन, 'क्या आप घर के काम में हाथ नहीं बंटाने वाले अपने पति से परेशान हैं? तो, सब कुछ भूलकर हमारे पास आइए', और 'अगर आपके पति घर के काम में रुचि नहीं लेते तो सब कुछ भूलकर हमारे पास आइए'।
इस कंपनी का नाम भी बड़ा ही दिलचस्प 'हसबेंड फार रेंट' रखा गया है। कंपनी आमतौर पर अकेली, तलाकशुदा और विधवा महिलाओं को किराए का पति उपलब्ध कराती है। कंपनी द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले किराए के पतियों को बिजली और लकड़ी के काम सहित कई और काम अच्छी तरह आते हैं।
कंपनी के मालिक डेनियल अलोंसो ने बताया कि उन्हें यह अजीबोगरीब आइडिया उस दिन आया जब उनकी पड़ोसन ने अलोंसो की पत्नी से अपना पति किराए पर लेने का मजाक किया। 56 वर्षीय अलोंसो का दावा है कि उनकी कंपनी के पास अभी दो हजार ग्राहक हैं। अलोंसो ने कहा कि सस्ते में घर के काम निपट जाने के कारण महिलाओं को यह सुविधा खूब पसंद आ रही है।
ब्यूनस आयर्स में कंपनी इतनी लोकप्रिय हो चुकी है कि अब उसके पास रात के तीन बजे भी फोन कॉल आते हैं।
सम्बंधित समाचार यहाँ पढ़ा जा सकता है।
Friday, 10 October 2008
नारी की आवाज़ तेज? अरे! यही उन्हें ज्यादा आकर्षक बनाती है।
एक नए शोध में खुलासा हुआ है कि अपने मासिक चक्र के दौरान महिलाओं का स्वर तब तेज हो जाता है जब वह अधिक प्रजननशील होती हैं और यही उन्हें ज्यादा आकर्षक बनाता है। शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि प्रजननशीलता के साथ महिलाओं की आवाज कम या ज्यादा हो जाती है।
असल में, महिलाओं की आवाज अंडोत्सर्ग के एक या दो दिन पहले तेज हो जाती है। इन्हीं दिनों में उनके गर्भधारण की संभावनाएं सबसे ज्यादा होती हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार यह पहला खुलासा है जब आवाज और प्रजननशीलता के बीच संबंधों का पता चला है। इससे इस विचार को समर्थन मिलता है कि मनुष्यों में भी प्रजननशीलता के बाहरी संकेत पशु-पक्षियों की ही तरह दिखाई देते हैं।
शीर्ष शोधकर्ता डा. ग्रेग ब्रायंट ने कहा, हमारा अध्ययन दर्शाता है कि प्रजननशीलता के अनुसार महिलाओं के स्वर में परिवर्तन आता है। वे अंडोत्सर्ग के जितने नजदीक होती हैं, उनका स्वर उतना बढ़ जाता है। हम यह कह रहे हैं कि स्वर तेज होने से उनकी प्रजननशीलता बढ़ जाती है और उनमें आकर्षण बढ़ जाता है। डा. ब्रायंट और कैलिफोर्निया विश्वविघालय के उनके सहयोगी 69 महिलाओं की आवाज के विश्लेषण के बाद इस नतीजे पर पहुंचे।
कुछ अधिक जानकारी यहाँ मिलेगी.
असल में, महिलाओं की आवाज अंडोत्सर्ग के एक या दो दिन पहले तेज हो जाती है। इन्हीं दिनों में उनके गर्भधारण की संभावनाएं सबसे ज्यादा होती हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार यह पहला खुलासा है जब आवाज और प्रजननशीलता के बीच संबंधों का पता चला है। इससे इस विचार को समर्थन मिलता है कि मनुष्यों में भी प्रजननशीलता के बाहरी संकेत पशु-पक्षियों की ही तरह दिखाई देते हैं।
शीर्ष शोधकर्ता डा. ग्रेग ब्रायंट ने कहा, हमारा अध्ययन दर्शाता है कि प्रजननशीलता के अनुसार महिलाओं के स्वर में परिवर्तन आता है। वे अंडोत्सर्ग के जितने नजदीक होती हैं, उनका स्वर उतना बढ़ जाता है। हम यह कह रहे हैं कि स्वर तेज होने से उनकी प्रजननशीलता बढ़ जाती है और उनमें आकर्षण बढ़ जाता है। डा. ब्रायंट और कैलिफोर्निया विश्वविघालय के उनके सहयोगी 69 महिलाओं की आवाज के विश्लेषण के बाद इस नतीजे पर पहुंचे।
कुछ अधिक जानकारी यहाँ मिलेगी.
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Friday, 3 October 2008
मुझको अपने गले लगा लो, ऐ मेरे जीवनसाथी
महंगे तोहफे देने या शाम को किसी आलीशान होटल में डिनर करने से ही शादीशुदा जिंदगी खुशहाल नहीं होती। शोधकर्ताओं ने खुशहाल शादीशुदा जिंदगी का गैरखर्चीला राज ढूंढ निकाला है। इसके मुताबिक दिन में चार बार अपने साथी को गले लगाकर शादीशुदा जिंदगी को खुशहाल बनाए रखा जा सकता है। अध्ययन के मुताबिक हर महीने अपने साथी के साथ कम से कम 22 बार पर्याप्त समय बिताकर आप अपने रिश्ते मधुर बनाए रख सकते हैं। इसमें साथ टहलना या रोमांटिक डिनर करना जैसी बातें भी शामिल हैं। 'द डेली टेलीग्राफ' में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि इसके लिए चार हजार जोड़ों पर एक अध्ययन किया गया।
अध्ययन के नतीजों से खुलासा हुआ कि अपनी शादीशुदा जिंदगी में खुशी तलाश रहे लोगों को महीने में कम से कम सात शाम एक-दूसरे के नाम करनी चाहिए। महीने में दो बार अपने साथी के साथ लांग ड्राइव पर जाने या या फिल्म देखने से भी बात बन सकती है। शोध में पतियों को महीने में एक बार अपनी पत्नी को उपहार देने की भी बात कही गई है। यही नहीं, इसमें महीने में एक शाम अपने साथी से अलग बिताने की भी सलाह दी गई है। मनोचिकित्सक लुडविग लोवेनस्टीन कहते हैं कि दांपत्य जीवन में प्यार भरे शब्द और हाव-भाव काफी मायने रखते हैं। कामकाज और परिवार पालने के चक्कर में लोग अक्सर अपने साथी को नजरअंदाज करते हैं। यहां तक कि लोग गले लगना सरीखी छोटी-छोटी बातों की अहमियत भी भूल जाते हैं।
(साभार: जागरण)
अध्ययन के नतीजों से खुलासा हुआ कि अपनी शादीशुदा जिंदगी में खुशी तलाश रहे लोगों को महीने में कम से कम सात शाम एक-दूसरे के नाम करनी चाहिए। महीने में दो बार अपने साथी के साथ लांग ड्राइव पर जाने या या फिल्म देखने से भी बात बन सकती है। शोध में पतियों को महीने में एक बार अपनी पत्नी को उपहार देने की भी बात कही गई है। यही नहीं, इसमें महीने में एक शाम अपने साथी से अलग बिताने की भी सलाह दी गई है। मनोचिकित्सक लुडविग लोवेनस्टीन कहते हैं कि दांपत्य जीवन में प्यार भरे शब्द और हाव-भाव काफी मायने रखते हैं। कामकाज और परिवार पालने के चक्कर में लोग अक्सर अपने साथी को नजरअंदाज करते हैं। यहां तक कि लोग गले लगना सरीखी छोटी-छोटी बातों की अहमियत भी भूल जाते हैं।
(साभार: जागरण)
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शादीशुदा जिंदगी
प्राथमिकता के लिहाज से सेक्स 17वें पायदान पर
भारतीय दंपती अभी भी सेक्स जैसे मुद्दे पर आपस में खुलकर बातचीत नहीं करते। एक सर्वे के मुताबिक, भारतीय पुरुषों के लिए प्राथमिकता के लिहाज से सेक्स 17वें पायदान पर आता है, जबकि महिलाओं में यह 14वें नंबर पर है। पारिवारिक जीवन के अलावा पुरुषों ने जीवनसाथी, करिअर, मां या पिता की भूमिका निभाने, आर्थिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ होने को अहमियत दी। कमोबेश महिलाओं की भी यही प्राथमिकताएं थीं।
यह सर्वे जानी-मानी दवा कंपनी फाइजर ग्लोबल फार्मास्युटिकल्स द्वारा कराया गया है। इससे निकले नतीजों के मुताबिक यौन संतुष्टि का शारीरिक स्वास्थ्य और प्यार या रोमैंस से गहरा संबंध है। मुंबई के लीलावती अस्पताल के डॉक्टर रुपिन शाह का कहना है कि भारत में जो पुरुष यौन जीवन से संतुष्ट नहीं हैं, उनके समग्र जीवन में भी संतुष्टि की कमी है। भारत में हुए इस सर्वे में 400 इलाके चुने गए थे। इनमें से अधिकतर शहरी क्षेत्र थे। इस पर टिप्पणी करते हुए शाह कहते हैं कि इस सर्वे को शहरी कहा जा सकता है। लेकिन एक डॉक्टर होने के नाते मैं जानता हूं कि देश के ग्रामीण इलाकों से भी सर्वे के ऐसे ही नतीजे निकलते।
सर्वे के अनुसार भारत सहित एशिया प्रशांत क्षेत्र देशों के 57 फीसदी पुरुष और 64 फीसदी महिलाएं सेक्स जीवन से बहुत संतुष्ट नहीं हैं। जो महिला और पुरुष अपने यौन जीवन से बहुत अधिक संतुष्ट हैं, उनमें से 67-87 फीसदी ने कहा कि वे अपने जीवन से खुश हैं। दूसरी ओर ऐसे लोग जो अपने सेक्स जीवन से कम संतुष्ट हैं, उनमें से महज 10 से 26 फीसदी ने माना कि उनकी जिंदगी खुशहाल है।
इस सर्वे का सबसे दिलचस्प पहलू यह था कि पुरुष सेक्स को जिंदगी की अहम प्राथमिकताओं में जगह देते हैं। दूसरी ओर, महिलाएं उसे कम तरजीह देती हैं। सर्वे में भारतीय पुरुषों की स्तंभन कठोरता और उनके सेक्स जीवन में भी सीधा संबंध देखा गया। इस सर्वे में भारत सहित 13 देशों के 25 से 74 की उम्र के कुल 3,957 लोगों को शामिल किया गया था, जिनमें 2016 पुरुष और 1,941 महिलाएं शामिल थीं।
यह सर्वे जानी-मानी दवा कंपनी फाइजर ग्लोबल फार्मास्युटिकल्स द्वारा कराया गया है। इससे निकले नतीजों के मुताबिक यौन संतुष्टि का शारीरिक स्वास्थ्य और प्यार या रोमैंस से गहरा संबंध है। मुंबई के लीलावती अस्पताल के डॉक्टर रुपिन शाह का कहना है कि भारत में जो पुरुष यौन जीवन से संतुष्ट नहीं हैं, उनके समग्र जीवन में भी संतुष्टि की कमी है। भारत में हुए इस सर्वे में 400 इलाके चुने गए थे। इनमें से अधिकतर शहरी क्षेत्र थे। इस पर टिप्पणी करते हुए शाह कहते हैं कि इस सर्वे को शहरी कहा जा सकता है। लेकिन एक डॉक्टर होने के नाते मैं जानता हूं कि देश के ग्रामीण इलाकों से भी सर्वे के ऐसे ही नतीजे निकलते।
सर्वे के अनुसार भारत सहित एशिया प्रशांत क्षेत्र देशों के 57 फीसदी पुरुष और 64 फीसदी महिलाएं सेक्स जीवन से बहुत संतुष्ट नहीं हैं। जो महिला और पुरुष अपने यौन जीवन से बहुत अधिक संतुष्ट हैं, उनमें से 67-87 फीसदी ने कहा कि वे अपने जीवन से खुश हैं। दूसरी ओर ऐसे लोग जो अपने सेक्स जीवन से कम संतुष्ट हैं, उनमें से महज 10 से 26 फीसदी ने माना कि उनकी जिंदगी खुशहाल है।
इस सर्वे का सबसे दिलचस्प पहलू यह था कि पुरुष सेक्स को जिंदगी की अहम प्राथमिकताओं में जगह देते हैं। दूसरी ओर, महिलाएं उसे कम तरजीह देती हैं। सर्वे में भारतीय पुरुषों की स्तंभन कठोरता और उनके सेक्स जीवन में भी सीधा संबंध देखा गया। इस सर्वे में भारत सहित 13 देशों के 25 से 74 की उम्र के कुल 3,957 लोगों को शामिल किया गया था, जिनमें 2016 पुरुष और 1,941 महिलाएं शामिल थीं।
Monday, 29 September 2008
युवती के धूम्रपान की आदत से उसका विवाह टूटते-टूटते बचा
धूम्रपान की आदत एक युवती को इतनी महंगी पड़ी कि उसका विवाह टूटते-टूटते बचा। महिला ने एक शपथ-पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं कि अगर वह दोबारा धूम्रपान करेगी तो उसका पति उसे बिना गुजारा भत्ता दिए तलाक दे सकेगा। युवती का पति धूम्रपान नहीं करता है और वह इसी शर्त पर अपनी पत्नी को मायके से वापस लाया है कि वह अब धूम्रपान नहीं करेगी।
हुआ यूं कि घर में अलग-अलग जगहों से सिगरेट की गंध आनी शुरू हो गई। इससे घरवालों को आश्चर्य हुआ क्योंकि घर में और कोई सिगरेट नहीं पीता था। खिड़कियों के आस-पास सिगरेट के टोटों ने इस बात की पुष्टि कर दी कि घर में कोई धूम्रपान कर रहा है। अमरावती की रहने वाली यह युवती अपने कालेज के समय में धूम्रपान की आदी हो गई थी और वह अपनी ससुराल में छिपकर सिगरेट पीती थी। एक दिन उसके सास-ससुर ने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया।
पकड़े जाने पर युवती ने कहा कि वह कई बार धूम्रपान की आदत छोड़ने की कोशिश कर चुकी है लेकिन उसे इसमें सफलता हासिल नहीं हुई। घरवालों ने उसे कड़ी चेतावनी देकर छोड़ दिया लेकिन वह अपनी आदत नहीं त्याग पाई और उसने छिप-छिप कर दोबारा सिगरेट पीना शुरू कर दिया। धूम्रपान छोड़ने संबंधी कोर्स पूरा करने के बाद उसका पति उसे वापस ले आया है लेकिन एक हलफनामे के साथ।
हुआ यूं कि घर में अलग-अलग जगहों से सिगरेट की गंध आनी शुरू हो गई। इससे घरवालों को आश्चर्य हुआ क्योंकि घर में और कोई सिगरेट नहीं पीता था। खिड़कियों के आस-पास सिगरेट के टोटों ने इस बात की पुष्टि कर दी कि घर में कोई धूम्रपान कर रहा है। अमरावती की रहने वाली यह युवती अपने कालेज के समय में धूम्रपान की आदी हो गई थी और वह अपनी ससुराल में छिपकर सिगरेट पीती थी। एक दिन उसके सास-ससुर ने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया।
पकड़े जाने पर युवती ने कहा कि वह कई बार धूम्रपान की आदत छोड़ने की कोशिश कर चुकी है लेकिन उसे इसमें सफलता हासिल नहीं हुई। घरवालों ने उसे कड़ी चेतावनी देकर छोड़ दिया लेकिन वह अपनी आदत नहीं त्याग पाई और उसने छिप-छिप कर दोबारा सिगरेट पीना शुरू कर दिया। धूम्रपान छोड़ने संबंधी कोर्स पूरा करने के बाद उसका पति उसे वापस ले आया है लेकिन एक हलफनामे के साथ।
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Sunday, 21 September 2008
मां का जुड़ाव, सिजेरियन के बजाय सामान्य प्रसव से पैदा हुए बच्चे से ज्यादा
धरती पर सबसे प्रगाढ़ और करीबी रिश्ता मां और उसके बच्चे का होता है। लेकिन हाल में हुए एक शोध में खुलासा किया गया है कि मां का जुड़ाव आपरेशन (सिजेरियन) के बजाय सामान्य प्रसव से पैदा हुए बच्चे से ज्यादा होता है। अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी के प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर जेम्स स्वेन ने शोध के दौरान सिजेरियन बच्चे की मांओं और सामान्य प्रसव से हुए बच्चों की मांओं की ब्रेन स्कैनिंग की। स्कैनिंग के दौरान उन्हें बच्चे के रोने की आवाज भी सुनाई गई। साथ ही उनके बच्चों की देखभाल करने संबंधी विचार भी जाने गए।
जिन मांओं के बच्चे सामान्य प्रसव से पैदा हुए थे उनके मस्तिष्क के कार्टेक्स में रोने की आवाज पर ज्यादा प्रतिक्रिया देखी गई। कार्टेक्स मस्तिष्क का वह हिस्सा होता है जो भावनाओं और संवेदनाओं के लिए जिम्मेदार होता है। स्वेन के मुताबिक सामान्य प्रसव से पैदा हुए बच्चों से ज्यादा जुड़ाव के पीछे न्यूरोहार्मोनल कारक जिम्मेदार हो सकते हैं। इनमें आक्सीटोसिन हार्मोन प्रमुख है। आक्सीटोसिन हार्मोन भावनात्मक जुड़ाव और प्यार का एहसास करने में बड़ी भूमिका निभाता है। इसके उलट सिजेरियन प्रसव में न्यूरोहार्मोनल कारकों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है जिसके कारण बच्चों से लगाव घट जाता है और प्रसवोत्तर अवसाद का खतरा भी बढ़ जाता है। इन सबके बावजूद स्वेन का कहना है कि हमारा इरादा भ्रांति पैदा करना नहीं है।
जिन मांओं के बच्चे सामान्य प्रसव से पैदा हुए थे उनके मस्तिष्क के कार्टेक्स में रोने की आवाज पर ज्यादा प्रतिक्रिया देखी गई। कार्टेक्स मस्तिष्क का वह हिस्सा होता है जो भावनाओं और संवेदनाओं के लिए जिम्मेदार होता है। स्वेन के मुताबिक सामान्य प्रसव से पैदा हुए बच्चों से ज्यादा जुड़ाव के पीछे न्यूरोहार्मोनल कारक जिम्मेदार हो सकते हैं। इनमें आक्सीटोसिन हार्मोन प्रमुख है। आक्सीटोसिन हार्मोन भावनात्मक जुड़ाव और प्यार का एहसास करने में बड़ी भूमिका निभाता है। इसके उलट सिजेरियन प्रसव में न्यूरोहार्मोनल कारकों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है जिसके कारण बच्चों से लगाव घट जाता है और प्रसवोत्तर अवसाद का खतरा भी बढ़ जाता है। इन सबके बावजूद स्वेन का कहना है कि हमारा इरादा भ्रांति पैदा करना नहीं है।
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Wednesday, 3 September 2008
शादी टूटने का कारण किसी की बेवफाई या अड़ियलपन नहीं, बल्कि खास जीन
शादी टूटना गंभीर समस्या है। मियां-बीवी के बीच व्यवहार संबंधी कई कारणों को इसका जिम्मेदार बताया जाता है। लेकिन स्वीडन के शोधकर्ताओं की मानें तो शादी टूटने का कारण किसी एक की बेवफाई या अड़ियलपन नहीं बल्कि खास जींन होते है। ये जीन पुरुष और महिला के जुड़ाव में भी अहम भूमिका निभाते हैं। वैज्ञानिकों ने तलाक और पुरुषों में मिलने वाले एक जीन के बीच एक खास संबंध देखा है। अब बहुत मुमकिन है कि कुछ समय बाद तलाक के मसले सुलझाने के लिए दंपती काउंसिलर की जगह जिनेटिक क्लीनिक की राह पकड़ने लगें।
कैरोलिंस्का इंस्टिट्यूट, स्टॉकहोम के हसी वैलम और उनके सहयोगियों का कहना है कि किसी भी रिश्ते में समस्याओं के कई कारण हो सकते हैं। वैलम भी जोर देकर कहते हैं कि महज़ जीन के आधार पर किसी पुरुष के व्यवहार का आकलन करना ठीक नहीं होगा। लेकिन वह यह भी कहते हैं कि इस जीन में इसी तरह के असर से हमारे शोध को काफी बल मिलता है। फिर भी इस शोध से इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि वैज्ञानिक एक दिन ऐसी दवाएं बना सकेंगे जो इस जीन पर असर करके शादियों को टूटने से बचा सकें।
कैरोलिंस्का इंस्टिट्यूट, स्टॉकहोम के हसी वैलम और उनके सहयोगियों का कहना है कि किसी भी रिश्ते में समस्याओं के कई कारण हो सकते हैं। वैलम भी जोर देकर कहते हैं कि महज़ जीन के आधार पर किसी पुरुष के व्यवहार का आकलन करना ठीक नहीं होगा। लेकिन वह यह भी कहते हैं कि इस जीन में इसी तरह के असर से हमारे शोध को काफी बल मिलता है। फिर भी इस शोध से इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि वैज्ञानिक एक दिन ऐसी दवाएं बना सकेंगे जो इस जीन पर असर करके शादियों को टूटने से बचा सकें।
Saturday, 30 August 2008
स्त्री-पुरुष के विपरीत स्वभाव पर दिलचस्प जानकारियाँ
पुरुष और महिलाएं भले ही हमराही हो गए हों, लेकिन दोनों का मूल स्वभाव आज भी अलग-अलग है। हर काम करने का दोनों का अंदाज़ एक-दूसरे से बिल्कुल जुदा होता है। पुरुषों को स्वभाव से आक्रामक, प्रतियोगिता में विश्वास रखने वाला और अपनी बातों को छिपाने में माहिर माना जाता है। दोस्तों से बातचीत में पुरुष अपने सारे राज़ भले ही खोल दें, लेकिन किसी अजनबी से गुफ्तगू में पूरी सावधानी बरतते हैं। कारण, उनकी किसी बात से विरोधी फायदा न उठा सकें। पुरुष आमतौर पर अपने कामकाज़ में किसी तरह की दखलंदाज़ी बर्दाश्त नहीं करते।
आपको यह जानकर हैरत होगी कि बड़े से बड़ा नुकसान होने और बहुत ज़्यादा खुशी दोनों ही हालत में पुरुष सेक्स की ज़रूरत शिद्दत से महसूस करते हैं। वे इसे तनाव से मुक्ति पाने वाला भी मानते हैं। वहीं, महिलाएं पुरुष-मित्र या पति से झगड़ा होने पर चाहती हैं कि उनकी बात को पूरी तरह सुना जाए, लेकिन अगर कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका से झगड़े के बाद उसे अपनी मज़बूत बांहों का सहारा देता है और दिल से उससे माफी मांग लेता है, तो महिलाएं सब कुछ तुरंत भूल जाती हैं। महिलाएं तारीखों का काफी हिसाब-किताब रखती हैं। उन्हें अपने जीवनसाथी या पुरुष-मित्र के साथ-साथ दोस्तों, परिचितों और पारिवारिक सदस्यों के जन्मदिन और सालगिरह की तारीखें याद रहती हैं, जबकि पुरुष कभी-कभी अपनी महिला-मित्र या पत्नी का भी जन्मदिन भूल जाते हैं।
महिलायें एक समय पर कई काम कर सकती हैं। वे फोन पर बात करते-करते टीवी देख सकती हैं। डिनर तैयार करते समय बच्चों की निगरानी कर सकती हैं, लेकिन पुरुष एक समय में एक ही काम करने में विश्वास रखते हैं।
पुरुषों के मुकाबले महिलाएं संकेत पहचानने में ज़्यादा माहिर होती हैं, लेकिन वे दिल के मामले में अपनी बात किसी पर जल्दी ज़ाहिर नहीं करतीं। महिलाएं अपने साथी की आंखों, बातों और उसके चेहरे के हाव-भाव से उसकी चाहत का अंदाज़ा बखूबी लगा लेती हैं, लेकिन किसी से कुछ कहतीं नहीं। जबकि पुरुष 'वो मुझे चाहती है, वो मुझे नहीं चाहती' की भूलभुलैया में भटकते रहते हैं।
पुरुष किसी भी चीज़ की ज़रूरत होने पर बड़ी आसानी से उसकी मांग कर देते हैं, पर महिलाएं अपनी पसंद की चीज़ की तरफ पहले केवल इशारा ही करती हैं। इसे न समझने पर वह अपनी मांग शब्दों से ज़ाहिर करती हैं। महिलाएं आमतौर पर अपने बच्चों की तमाम ज़रूरतों के प्रति सजग रहती हैं। उनकी पढ़ाई, अच्छे दोस्तों, प्रिय खाद्य पदार्थ , उनकी आशाओं और सपनों से वे पूरी तरह वाकिफ होती हैं, जबकि पुरुषों का ज़्यादातर समय बाहर बीतता है, इसलिए वे अपने बच्चों को उतनी अच्छी तरह नहीं जान पाते।
महिलाएं टीवी देखते समय एक ही चैनल पर ज़्यादा समय तक टिक सकती हैं। किस चैनल पर उनका पसंदीदा प्रोग्राम कब आएगा, यह उन्हें अच्छी तरह पता होता है, वहीं पुरुष एक समय में छह या सात चैनल देखते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि कुछ समय पहले वे किस चैनल पर कौन-सा कार्यक्रम देख रहे थे! महिलाओं को सोने के लिए पूरी शांति की ज़रूरत होती है। हो सकता है कि एक बल्ब जलता रहने पर वह चैन से न सो पाएं, जबकि पुरुष शोर में भी 'घोड़े बेचकर' सो सकते हैं। चाहे कुत्ते भौंक रहे हों, तेज़ आवाज़ में गाना बज रहा हो या बच्चे ऊधम मचा रहे हों, अगर उन्हें सोना है, तो फिर कोई भी चीज़ उनके लिए कोई मायने नहीं रखती।
(हैलो दिल्ली, नवभारत टाइम्स से साभार)
आपको यह जानकर हैरत होगी कि बड़े से बड़ा नुकसान होने और बहुत ज़्यादा खुशी दोनों ही हालत में पुरुष सेक्स की ज़रूरत शिद्दत से महसूस करते हैं। वे इसे तनाव से मुक्ति पाने वाला भी मानते हैं। वहीं, महिलाएं पुरुष-मित्र या पति से झगड़ा होने पर चाहती हैं कि उनकी बात को पूरी तरह सुना जाए, लेकिन अगर कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका से झगड़े के बाद उसे अपनी मज़बूत बांहों का सहारा देता है और दिल से उससे माफी मांग लेता है, तो महिलाएं सब कुछ तुरंत भूल जाती हैं। महिलाएं तारीखों का काफी हिसाब-किताब रखती हैं। उन्हें अपने जीवनसाथी या पुरुष-मित्र के साथ-साथ दोस्तों, परिचितों और पारिवारिक सदस्यों के जन्मदिन और सालगिरह की तारीखें याद रहती हैं, जबकि पुरुष कभी-कभी अपनी महिला-मित्र या पत्नी का भी जन्मदिन भूल जाते हैं।
महिलायें एक समय पर कई काम कर सकती हैं। वे फोन पर बात करते-करते टीवी देख सकती हैं। डिनर तैयार करते समय बच्चों की निगरानी कर सकती हैं, लेकिन पुरुष एक समय में एक ही काम करने में विश्वास रखते हैं।
पुरुषों के मुकाबले महिलाएं संकेत पहचानने में ज़्यादा माहिर होती हैं, लेकिन वे दिल के मामले में अपनी बात किसी पर जल्दी ज़ाहिर नहीं करतीं। महिलाएं अपने साथी की आंखों, बातों और उसके चेहरे के हाव-भाव से उसकी चाहत का अंदाज़ा बखूबी लगा लेती हैं, लेकिन किसी से कुछ कहतीं नहीं। जबकि पुरुष 'वो मुझे चाहती है, वो मुझे नहीं चाहती' की भूलभुलैया में भटकते रहते हैं।
पुरुष किसी भी चीज़ की ज़रूरत होने पर बड़ी आसानी से उसकी मांग कर देते हैं, पर महिलाएं अपनी पसंद की चीज़ की तरफ पहले केवल इशारा ही करती हैं। इसे न समझने पर वह अपनी मांग शब्दों से ज़ाहिर करती हैं। महिलाएं आमतौर पर अपने बच्चों की तमाम ज़रूरतों के प्रति सजग रहती हैं। उनकी पढ़ाई, अच्छे दोस्तों, प्रिय खाद्य पदार्थ , उनकी आशाओं और सपनों से वे पूरी तरह वाकिफ होती हैं, जबकि पुरुषों का ज़्यादातर समय बाहर बीतता है, इसलिए वे अपने बच्चों को उतनी अच्छी तरह नहीं जान पाते।
महिलाएं टीवी देखते समय एक ही चैनल पर ज़्यादा समय तक टिक सकती हैं। किस चैनल पर उनका पसंदीदा प्रोग्राम कब आएगा, यह उन्हें अच्छी तरह पता होता है, वहीं पुरुष एक समय में छह या सात चैनल देखते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि कुछ समय पहले वे किस चैनल पर कौन-सा कार्यक्रम देख रहे थे! महिलाओं को सोने के लिए पूरी शांति की ज़रूरत होती है। हो सकता है कि एक बल्ब जलता रहने पर वह चैन से न सो पाएं, जबकि पुरुष शोर में भी 'घोड़े बेचकर' सो सकते हैं। चाहे कुत्ते भौंक रहे हों, तेज़ आवाज़ में गाना बज रहा हो या बच्चे ऊधम मचा रहे हों, अगर उन्हें सोना है, तो फिर कोई भी चीज़ उनके लिए कोई मायने नहीं रखती।
(हैलो दिल्ली, नवभारत टाइम्स से साभार)
Monday, 25 August 2008
मैंने किसी की माँ की... किसी की पत्नी की... नहीं की है।
पिछले दिनों एक ब्लॉगर साथी की अच्छी, सामयिक, सुलझी हुयी पोस्ट उनकी सुपुत्री के सौजन्य से पढ़ने को मिली। दैनंदिन व्यस्ततायों के चलते हर पोस्ट पर दो-चार शब्दों से अधिक वाली टिप्पणी कर पाना सम्भव नहीं होता। लेकिन इस कन्या भ्रूण ह्त्या और दहेज़ जैसी सामाजिक बुराई की ओर इशारा करती पोस्ट पर कतिपय नारी समर्थक सामूहिक ब्लॉग की ओर इशारा करने के साथ-साथ मैंने एक विचार भी रख दिया। हालांकि उसके पहले भी सच की टिप्पणी कुछ इसी तरह की थी
मेरी दी गयी टिप्पणी में बस इतना ही कौतूहल था कि ... कोई जानी-पहचानी प्रतिक्रिया क्यों नहीं आयी! मेरा इतना लिखना भर ही काफी साबित हुया बवाल मचाने के लिए।
पढ़ने वालों को, बिना शब्दों पर ध्यान दिए, ऐसा लगा मानो मैंने आधी सृष्टि को चुनौती दे दी हो कि कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं आयी। फिर क्या था, आंकड़े प्रस्तुत किए गए, द्विवेदी जी को 'प्रेरित' किया गया कि वे पतिनुमा प्राणी को बता दें ... अपशब्दों का प्रयोग करना बंद करें
मैं हैरत में पड़ गया! अपशब्द !? ये अपशब्द मैंने कहाँ लिख दिए? ज्ञात होते हुए भी, जिन शब्दों का मौखिक-लिखित-मानसिक-वैचारिक उपयोग कभी नहीं किया, उनके प्रयोग का आरोप! इन माननीया को यदि कभी, वास्तविकता में अपशब्दों का सामना करना पड़ा जाए तो क्या करेंगीं? हालांकि इनका दावा इनके कमेन्ट फॉर्म पर है कि इसी बात को इंगित करते हुए मेरी दूसरी टिप्पणी इस निवेदन के साथ गयी कि द्विवेदी जी के ब्लॉग पर, इन औचित्यहीन बातों पर तो कोई तुक नहीं। उनसे क्षमा चाहता हूँ। ... अनुरोध है कि वे अपने या मेरे ब्लॉग पर ही अपनी बात रखें।
द्विवेदी जी ने पता नहीं क्या सोचकर उन टिप्पणियों को 'उड़ा' दिया। फिर पता नहीं किन परिस्थितियों में, मूल आलेख से ध्यान हटाते हुए 'उन' टिप्पणियों पर आधारित एक पोस्ट ही लिख मारी। जिसमें एक तरह से सफाई पेश की
और मेरा परिचय कराते हुए उन्होंने मेरी माँ, बच्चों , पत्नी, यहाँ तक कि भगवान को भी लपेट लिया! माता जी से नाराज ...कि जन्म ही क्यों दिया? ...अठारवीं शताब्दी में नम्बर लगाया था, पैदा किया बीसवीं के उत्तरार्ध में... ...जरूरत थी एक संतान की, पैदा हो गईं दो... ...एक पाप कर डाला, ब्याह कर लिया। ...पैदा करने में भगवान जी ने जो देरी की, उस के नतीजे में पाला पड़ा ऐसी पत्नी से जो आकांक्षा रखती है। ...कुछ कहें तो बराबर की बजातीं है।
मैं तो दंग रह गया! सोचने लगा कि क्या अपशब्दों के लिए अंग-विशेष से जुड़े किन्हीं खास शब्दों की जरूरत होती है। उनकी पोस्ट ख़त्म होते-होते लगा कि वे अपने लिए ही कह रहें हों कि भड़ास निकालने वाले को रोकने पर उसे कितनी परेशानी होती है? सोच भी नहीं सकते। सोचने की जरूरत भी नहीं। मैंने सोचना बंद कर लिखना शरू कर दिया।
इसी बीच द्विवेदी जी की पोस्ट पर अनुराग जी की टिप्पणी आयी क्या आपसे वैचारिक असहमति रखना ही नारी विरोधी होना है? जब आप वहां वैचारिक असहमति जताते है तो बहस मुड जाती है ,अपने मुद्दे से भटक जाती है ... हर मुद्दे को स्त्री ओर पुरूष के चश्मे से नही देखना चाहिए ... तो द्विवेदी जी का जवाब गया ...विमर्श में कोई बुरका पहन कर नहीं आता। जब मैंने सच का ब्लॉग देखना चाहा तो पाया कि वहाँ तो बुर्के की आवश्यकता भी नहीं है।
सच ने फिर एक प्रश्न उछाला: मैंने तो बस इतना पूछा था कि पुरवा के ...लेख पर सब ने एक सुर से सही का निशाँ लगाया क्योकि उसके पिता के ब्लॉग पर ये लेख था। अन्य ब्लॉग पर अगर स्त्री विमर्श होता हैं तो गालियाँ और अपशब्दों की टिप्पणी होती हैं। ये भेद भाव क्यों ??
और उसके बाद आने वाली टिप्पणियाँ कैसी आयीं देखिये
अरविन्द मिश्रा - अब यह विमर्श डेंजर ज़ोन में जा रहा है ...फूट लेना ही बेहतर !
उड़न तश्तरी - बड़ी पेंच है भाई -चलते हैं!!
सिद्दार्थ शंकर त्रिपाठी- पढ़ो और फूट लो भाई... माहौल गर्म है।
ज्ञानदत्त पाण्डेय- यहां बोलना खतरे जान है! :-)
इन सबके बीच जब सच ने मुझे संबोधित कर लिखा कि आप को दिवेदी जी की बेटी की पोस्ट पर आप को कोई ओब्जेक्शन नहीं हुआ। तो तरस भी आया कि उसमें ऐसा क्या था जिस पर पर मैं आपत्ति उठाता? वैसे वैचारिक मतभेद के रूप में अपने विचार तो रख ही दिए थे कि ... आलेख में मूल तौर पर दहेज को कारक माना गया है। लेकिन उन परिवारों में, जहाँ दहेज कोई मायने नहीं रखता, वहाँ भी तो यही हाल है।
जब प्रेमचंद जी का उद्धरण दिया गया कि पुरूष, स्त्री के गुण अपना ले तो देवता बन जाता है और स्त्री, पुरूषों के गुण अपना ले तो कुलटा कहलाती है। तो अफसोस फिर हुया कि हमारे साथी शब्दों पर ध्यान क्यों नहीं देते!
कुलटा बनने/होने और कहलाने में बहुत फर्क है।
इस पोस्ट को लिखते-लिखते द्विवेदी जी की नयी पोस्ट पर नज़र पडी। लगा, कुछ नया पढ़ने को मिलेगा, लेकिन फिर वही राग। समझ में नहीं आया तिलमिला कौन रहा है? जब उनका भी यही सोचना है कि महिलाएँ संऱक्षण के बावजूद भी अपशब्द का शिकार होंगी, तो विलाप किस बात का? जब उन जैसा व्यक्ति भी मेरी सामान्य सी भाषा को, रस्सी को पत्थर पर रगड़-रगड़ कर, अपशब्द ठहराने पर तुला हुया हो तो कुछ कहना ही बेमानी है। हाँ, वे आत्मस्वीकृतिनुमा भाषा का प्रयोग करते हुए कहतें है ...जब वे (महिलायें) हासिल कर चुकी होती हैं, तो अन्य को भी प्रेरित करती हैं। कानून और प्रत्यक्ष ऱूप से पुरुषों को भी उन का साथ देना होता है।
इसी बीच पति-पत्नी ब्लॉग पर बांयीं और के मैसेज बॉक्स में किन्हीं संजय द्विवेदी जी का प्रश्न दिखा 'आपकी बीबी ने अभी तक यह ब्लॉग पढ़ा नही है क्या ?' तो लगा कि एक खौफज़दा पर, बीबी का हौव्वा इतना भारी है कि दूसरों को भी धमका रहे हैं!
इन सभी औचित्यहीन बातों के बाद भी, मुझे अभी भी उम्मीद है कि उनके प्रेरणा स्त्रोत ओर वे, मेरी पहली टिप्पणी पर समय देंगें ओर स्वस्थ विचार-विमर्श के लिए रास्ता खुला रखेंगें। टिप्पणियों को ऐसे ही लें जैसे गुलाब के साथ कांटे, न कि काँटों पर ध्यान देते-देते गुलाब का आनंद खो दें। जिस आलेख पर टिप्पणी के कारण इस पोस्ट के लिखे जाने की नौबत आयी है, नि:संदेह एक अच्छा प्रयास है, आंकडों और तथ्यों की रोशनी में। अच्छे प्रयासों की तारीफ होनी ही चाहिए, लेकिन 'प्रेरित' द्विवेदी जी द्वारा व्यक्तिगत प्रहार किए जाने से पूरा आनन्द ही जाता रहा। मुझे अंदेशा है कि वे मुझे जानते हैं। यदि नहीं तो, कोशिश करूंगा, उन्हें मेरा वास्तविक परिचय न मिल पाये।
संतुलित लेखन के बावजूद, यदि किसी को लगता है कि ये 'हिट बेलो द बेल्ट' है तो ध्यान दें कि अधिकतर शब्द मेरे नहीं हैं, आप ही के हैं! मैंने किसी की माँ की... किसी की बेटी की... किसी के परिवार की... किसी की पत्नी की... किसी के भगवान की कोई बात नहीं की है।
मेरी दी गयी टिप्पणी में बस इतना ही कौतूहल था कि ... कोई जानी-पहचानी प्रतिक्रिया क्यों नहीं आयी! मेरा इतना लिखना भर ही काफी साबित हुया बवाल मचाने के लिए।
पढ़ने वालों को, बिना शब्दों पर ध्यान दिए, ऐसा लगा मानो मैंने आधी सृष्टि को चुनौती दे दी हो कि कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं आयी। फिर क्या था, आंकड़े प्रस्तुत किए गए, द्विवेदी जी को 'प्रेरित' किया गया कि वे पतिनुमा प्राणी को बता दें ... अपशब्दों का प्रयोग करना बंद करें
मैं हैरत में पड़ गया! अपशब्द !? ये अपशब्द मैंने कहाँ लिख दिए? ज्ञात होते हुए भी, जिन शब्दों का मौखिक-लिखित-मानसिक-वैचारिक उपयोग कभी नहीं किया, उनके प्रयोग का आरोप! इन माननीया को यदि कभी, वास्तविकता में अपशब्दों का सामना करना पड़ा जाए तो क्या करेंगीं? हालांकि इनका दावा इनके कमेन्ट फॉर्म पर है कि इसी बात को इंगित करते हुए मेरी दूसरी टिप्पणी इस निवेदन के साथ गयी कि द्विवेदी जी के ब्लॉग पर, इन औचित्यहीन बातों पर तो कोई तुक नहीं। उनसे क्षमा चाहता हूँ। ... अनुरोध है कि वे अपने या मेरे ब्लॉग पर ही अपनी बात रखें।
द्विवेदी जी ने पता नहीं क्या सोचकर उन टिप्पणियों को 'उड़ा' दिया। फिर पता नहीं किन परिस्थितियों में, मूल आलेख से ध्यान हटाते हुए 'उन' टिप्पणियों पर आधारित एक पोस्ट ही लिख मारी। जिसमें एक तरह से सफाई पेश की
और मेरा परिचय कराते हुए उन्होंने मेरी माँ, बच्चों , पत्नी, यहाँ तक कि भगवान को भी लपेट लिया! माता जी से नाराज ...कि जन्म ही क्यों दिया? ...अठारवीं शताब्दी में नम्बर लगाया था, पैदा किया बीसवीं के उत्तरार्ध में... ...जरूरत थी एक संतान की, पैदा हो गईं दो... ...एक पाप कर डाला, ब्याह कर लिया। ...पैदा करने में भगवान जी ने जो देरी की, उस के नतीजे में पाला पड़ा ऐसी पत्नी से जो आकांक्षा रखती है। ...कुछ कहें तो बराबर की बजातीं है।
मैं तो दंग रह गया! सोचने लगा कि क्या अपशब्दों के लिए अंग-विशेष से जुड़े किन्हीं खास शब्दों की जरूरत होती है। उनकी पोस्ट ख़त्म होते-होते लगा कि वे अपने लिए ही कह रहें हों कि भड़ास निकालने वाले को रोकने पर उसे कितनी परेशानी होती है? सोच भी नहीं सकते। सोचने की जरूरत भी नहीं। मैंने सोचना बंद कर लिखना शरू कर दिया।
इसी बीच द्विवेदी जी की पोस्ट पर अनुराग जी की टिप्पणी आयी क्या आपसे वैचारिक असहमति रखना ही नारी विरोधी होना है? जब आप वहां वैचारिक असहमति जताते है तो बहस मुड जाती है ,अपने मुद्दे से भटक जाती है ... हर मुद्दे को स्त्री ओर पुरूष के चश्मे से नही देखना चाहिए ... तो द्विवेदी जी का जवाब गया ...विमर्श में कोई बुरका पहन कर नहीं आता। जब मैंने सच का ब्लॉग देखना चाहा तो पाया कि वहाँ तो बुर्के की आवश्यकता भी नहीं है।
सच ने फिर एक प्रश्न उछाला: मैंने तो बस इतना पूछा था कि पुरवा के ...लेख पर सब ने एक सुर से सही का निशाँ लगाया क्योकि उसके पिता के ब्लॉग पर ये लेख था। अन्य ब्लॉग पर अगर स्त्री विमर्श होता हैं तो गालियाँ और अपशब्दों की टिप्पणी होती हैं। ये भेद भाव क्यों ??
और उसके बाद आने वाली टिप्पणियाँ कैसी आयीं देखिये
अरविन्द मिश्रा - अब यह विमर्श डेंजर ज़ोन में जा रहा है ...फूट लेना ही बेहतर !
उड़न तश्तरी - बड़ी पेंच है भाई -चलते हैं!!
सिद्दार्थ शंकर त्रिपाठी- पढ़ो और फूट लो भाई... माहौल गर्म है।
ज्ञानदत्त पाण्डेय- यहां बोलना खतरे जान है! :-)
इन सबके बीच जब सच ने मुझे संबोधित कर लिखा कि आप को दिवेदी जी की बेटी की पोस्ट पर आप को कोई ओब्जेक्शन नहीं हुआ। तो तरस भी आया कि उसमें ऐसा क्या था जिस पर पर मैं आपत्ति उठाता? वैसे वैचारिक मतभेद के रूप में अपने विचार तो रख ही दिए थे कि ... आलेख में मूल तौर पर दहेज को कारक माना गया है। लेकिन उन परिवारों में, जहाँ दहेज कोई मायने नहीं रखता, वहाँ भी तो यही हाल है।
जब प्रेमचंद जी का उद्धरण दिया गया कि पुरूष, स्त्री के गुण अपना ले तो देवता बन जाता है और स्त्री, पुरूषों के गुण अपना ले तो कुलटा कहलाती है। तो अफसोस फिर हुया कि हमारे साथी शब्दों पर ध्यान क्यों नहीं देते!
कुलटा बनने/होने और कहलाने में बहुत फर्क है।
इस पोस्ट को लिखते-लिखते द्विवेदी जी की नयी पोस्ट पर नज़र पडी। लगा, कुछ नया पढ़ने को मिलेगा, लेकिन फिर वही राग। समझ में नहीं आया तिलमिला कौन रहा है? जब उनका भी यही सोचना है कि महिलाएँ संऱक्षण के बावजूद भी अपशब्द का शिकार होंगी, तो विलाप किस बात का? जब उन जैसा व्यक्ति भी मेरी सामान्य सी भाषा को, रस्सी को पत्थर पर रगड़-रगड़ कर, अपशब्द ठहराने पर तुला हुया हो तो कुछ कहना ही बेमानी है। हाँ, वे आत्मस्वीकृतिनुमा भाषा का प्रयोग करते हुए कहतें है ...जब वे (महिलायें) हासिल कर चुकी होती हैं, तो अन्य को भी प्रेरित करती हैं। कानून और प्रत्यक्ष ऱूप से पुरुषों को भी उन का साथ देना होता है।
इसी बीच पति-पत्नी ब्लॉग पर बांयीं और के मैसेज बॉक्स में किन्हीं संजय द्विवेदी जी का प्रश्न दिखा 'आपकी बीबी ने अभी तक यह ब्लॉग पढ़ा नही है क्या ?' तो लगा कि एक खौफज़दा पर, बीबी का हौव्वा इतना भारी है कि दूसरों को भी धमका रहे हैं!
इन सभी औचित्यहीन बातों के बाद भी, मुझे अभी भी उम्मीद है कि उनके प्रेरणा स्त्रोत ओर वे, मेरी पहली टिप्पणी पर समय देंगें ओर स्वस्थ विचार-विमर्श के लिए रास्ता खुला रखेंगें। टिप्पणियों को ऐसे ही लें जैसे गुलाब के साथ कांटे, न कि काँटों पर ध्यान देते-देते गुलाब का आनंद खो दें। जिस आलेख पर टिप्पणी के कारण इस पोस्ट के लिखे जाने की नौबत आयी है, नि:संदेह एक अच्छा प्रयास है, आंकडों और तथ्यों की रोशनी में। अच्छे प्रयासों की तारीफ होनी ही चाहिए, लेकिन 'प्रेरित' द्विवेदी जी द्वारा व्यक्तिगत प्रहार किए जाने से पूरा आनन्द ही जाता रहा। मुझे अंदेशा है कि वे मुझे जानते हैं। यदि नहीं तो, कोशिश करूंगा, उन्हें मेरा वास्तविक परिचय न मिल पाये।
संतुलित लेखन के बावजूद, यदि किसी को लगता है कि ये 'हिट बेलो द बेल्ट' है तो ध्यान दें कि अधिकतर शब्द मेरे नहीं हैं, आप ही के हैं! मैंने किसी की माँ की... किसी की बेटी की... किसी के परिवार की... किसी की पत्नी की... किसी के भगवान की कोई बात नहीं की है।
Saturday, 23 August 2008
86 बीवियों के शौहर के खिलाफ मौत का फतवा
नाईजीरिया में 86 बीवियों के शौहर मोहम्मद बेलो अबूबकर के खिलाफ इस्लामिक कानून के तहत फतवा जारी कर तीन दिन के भीतर सिर्फ चार बीवियां रखने और बाकी सबको तलाक देने या फिर खुद मौत की सजा भुगतने को तैयार रहने का फरमान सुनाया है। स्थानीय मीडिया के मुताबिक नाईजर प्रांत के निवासी 84 साल के अबूबकर की 86 बीवियां और 170 बच्चे होने की खबर आने के बाद यह भारी भरकम कुनबा सुर्खियों में आ गया। इसके महज दो सप्ताह बाद ही जमात नसरिल इस्लाम की ओर से शरियत कानून का हवाला देते हुये यह सजा सुनाई है।
हालांकि अबूबकर ने भी कुरान का हवाला देते हुये इस फरमान को चुनौती दे दी है। उनकी दलील है कि कुरान में चार से अधिक बीवियां रखने पर सजा का कोई प्रावधान नहीं है। इसके अलावा अबूबकर ने खुदा से मिली उस क्षमता का भी हवाला देते हुये स्वयं को निर्दोष बताने की कोशिश की जिसके बूते वह एकसाथ 86 बीवियों को संभालने और खुश रखने के काम को बखूबी अंजाम दे रहे हैं। हालांकि उन्होंने लोगों को नसीहत दी है कि उनके इस काम का कोई अनुसरण न करे क्योंकि यह बडा ही कठिन काम है।
हालांकि अबूबकर ने भी कुरान का हवाला देते हुये इस फरमान को चुनौती दे दी है। उनकी दलील है कि कुरान में चार से अधिक बीवियां रखने पर सजा का कोई प्रावधान नहीं है। इसके अलावा अबूबकर ने खुदा से मिली उस क्षमता का भी हवाला देते हुये स्वयं को निर्दोष बताने की कोशिश की जिसके बूते वह एकसाथ 86 बीवियों को संभालने और खुश रखने के काम को बखूबी अंजाम दे रहे हैं। हालांकि उन्होंने लोगों को नसीहत दी है कि उनके इस काम का कोई अनुसरण न करे क्योंकि यह बडा ही कठिन काम है।
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Thursday, 21 August 2008
पुरूषों की लंबी उम्र के लिए बेहतर है एक से ज्यादा बीवियां!
अभी अभी एक ब्लॉगर साथी ने अपनी पोस्ट में ऐलान किया है कि ब्याह करना पाप है! लेकिन एक हालिया शोध का निष्कर्ष है कि एक से ज्यादा पत्नियां रखने वाले पुरुष लंबी उम्र पाते हैं। प्रमुख शोधकर्ता विरपी लुम्मा के मुताबिक एकपत्नी प्रथा पर अमल करने वाले 49 देशों के पुरुषों की तुलना में बहुपत्नी प्रथा वाले 140 देशों में 60 साल से ज्यादा उम्र के पुरुष 12 फीसदी ज्यादा जीते हैं। लंबे अरसे से वैज्ञानिक मानव जीवविज्ञान की इस गुत्थी को सुलझाने की कोशिश कर रहे थे कि पुरुष लंबी उम्र तक क्यों जीते हैं? बहुपत्नी प्रथा इस प्रश्न को सुलझाने में अहम साबित हुई है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक महिलाओं की लंबी उम्र का राज उनकी रजोनिवृत्ति में छुपा होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो मासिक धर्म खत्म हो जाने के बाद महिलाएं ज्यादा जीती हैं। रजोनिवृत्त महिलाओं की लंबी उम्र को लुम्मा 'दादी मां प्रभाव' बताती हैं। वह कहती हैं कि रजोनिवृत्ति के बाद कोई महिला दस साल जीती है तो उसे दो अतिरिक्त पोते-पोतियों को प्यार-दुलार करने का मौका मिलता है। शोध में महिलाओं की लंबी उम्र के पीछे पोते-पोतियों को दुलार करना तथा उनके नाज-नखरे सहने को एक बड़ा कारण बताया गया है। लेकिन पुरुषों का जीव विज्ञान महिलाओं से भिन्न होता है। वे 80 साल के बाद भी यौन क्रिया में हिस्सा ले सकते हैं। ज्यादातर अनुसंधानकर्ता इसी बात को मर्दो की लंबी जिंदगी का राज बताते हैं।
वैज्ञानिकों ने दादी मां प्रभाव की तरह पुरुषों में 'दादा प्रभाव' का अध्ययन किया। इसके लिए उन्होंने 18वीं और 19वीं सदी के 25,000 फिनलैंडवासियोंके रिकार्ड खंगाले। इनमें से ज्यादातर लोग अपेक्षाकृत कम दिन जीवित पाए गए। यह वह दौर था जब लोग स्थान परिवर्तन कम करने के साथ परिवार नियोजन के तरीके भी नहीं अपनाते थे। चर्च की तरफ से एकपत्नी प्रथा कठोरता से लागू थी। पत्नी की मृत्यु के बाद ही पुरुष दूसरी शादी कर सकते थे।
शोधकर्ताओं के मुताबिक महिलाओं की लंबी उम्र का राज उनकी रजोनिवृत्ति में छुपा होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो मासिक धर्म खत्म हो जाने के बाद महिलाएं ज्यादा जीती हैं। रजोनिवृत्त महिलाओं की लंबी उम्र को लुम्मा 'दादी मां प्रभाव' बताती हैं। वह कहती हैं कि रजोनिवृत्ति के बाद कोई महिला दस साल जीती है तो उसे दो अतिरिक्त पोते-पोतियों को प्यार-दुलार करने का मौका मिलता है। शोध में महिलाओं की लंबी उम्र के पीछे पोते-पोतियों को दुलार करना तथा उनके नाज-नखरे सहने को एक बड़ा कारण बताया गया है। लेकिन पुरुषों का जीव विज्ञान महिलाओं से भिन्न होता है। वे 80 साल के बाद भी यौन क्रिया में हिस्सा ले सकते हैं। ज्यादातर अनुसंधानकर्ता इसी बात को मर्दो की लंबी जिंदगी का राज बताते हैं।
वैज्ञानिकों ने दादी मां प्रभाव की तरह पुरुषों में 'दादा प्रभाव' का अध्ययन किया। इसके लिए उन्होंने 18वीं और 19वीं सदी के 25,000 फिनलैंडवासियोंके रिकार्ड खंगाले। इनमें से ज्यादातर लोग अपेक्षाकृत कम दिन जीवित पाए गए। यह वह दौर था जब लोग स्थान परिवर्तन कम करने के साथ परिवार नियोजन के तरीके भी नहीं अपनाते थे। चर्च की तरफ से एकपत्नी प्रथा कठोरता से लागू थी। पत्नी की मृत्यु के बाद ही पुरुष दूसरी शादी कर सकते थे।
Sunday, 10 August 2008
बच्चे 170, बीवियां 86, उम्र 84 और इस करनी को न अपनाने की सलाह
नाइजीरिया के मोहम्मद बेल्लो अबूबकर की उम्र 84 वर्ष है और उनकी 86 बीवियां हैं, लेकिन वे अन्य पुरूषों को सलाह देते हैं कि उनकी इस करनी को उदाहरण मानकर न अपनाएं। अपनी 86 बीवियों और कम से कम 170 बच्चों के साथ नाइजीरिया में रहने वाले अबूबकर कहते हैं कि खुदा का ही शुक्र है कि वे इतनी बीवियों के साथ सहज रह पाते हैं। उन्होंने बताया, एक पुरूष की अगर 10 बीवियां हो तो उसका जीना बेहाल हो जाएगा, लेकिन अल्लाह ने मुझे शक्ति दी हैं जिस कारण मैं 86 बीवियों को संभाल रहा हूं।
पूर्व में शिक्षक और इस्लाम के प्रचारक रह चुके अबूबकर कहते हैं कि उनकी बीवियों ने बीमारियों से निजात दिलाने की उनकी शोहरत के कारण ही उन्हें चुना है। वे कहते हैं, ‘मैं बीवियों की खोज में नहीं जाता बल्कि वे ही मेरे पास आती है’ लेकिन नाइजीरियो के इस्लामी अधिकारियों ने अबूबकर के इस दावे को नहीं मानते हुए उनके परिवार को एक ‘पंथ’ करार दिया है। इस्लाम के ज्यादातर विद्वानों का मानना है कि यदि एक व्यक्ति अपनी बीवियों को समान रूप से आदर और सम्मान दे सकने के काबिल है तो वह चार औरतों से शादी कर सकता है। लेकिन अबूबकर कहते हैं कि चार से अधिक शादियां करने पर कुरान में किसी प्रकार के दंड की बात नहीं की गई है जैसे ही अबूबकर अपने घर से बाहर आए उनकी बीवियां और बच्चे उनका गुणगान करने लगे उनकी ज्यादातर बीवियों की उम्र 25 वर्ष से भी कम है उनकी बीवियों ने बताया कि विभिन्न बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए वे अबूबकर के पास सहायता लेने के लिए गई और उनकी बीमारियां ठीक हो गई, इसी दौरान अबूबकर से उनकी मुलकात हुई।
शरीफत बेल्लो अबूबकर ने बताया जैसे ही मैं उनसे मिली मेरे सिर का दर्द जाता रहा अल्लाह ने मुझे बताया कि उनसे शादी करने का समय आ गया है अल्लाह का शुक्र है कि मैं अब उनकी बीवी हूं। शादी के वक्त शरीफत बेल्लो की उम्र 25 वर्ष थी और अबूबकर और उनकी बीवियां कोई काम नहीं करती है। इतने बड़े परिवार के गुजारे के लिए प्रत्यक्षत उनके पास कोई साधन भी नहीं दिखता हर भोजन के समय उनके यहां 12-12 किलो के तीन बर्तन भर कर चावल इस्तेमाल होते हैं और हर दिन के खाने का खर्च 915 डॉलर या 457 पाउंड का खर्च आता है। वे यह बताने से इंकार करते हैं कि कैसे वे अपने परिवार के लिए खाने और पहनने की व्यवस्था करते हैं। वे कहते है सब अल्लाह का फजल है उनकी एक बीवी का कहना है कि अबूबकर कभी-कभी अपने बच्चों को भीख मांग कर लाने के लिए कहते हैं।
अबूबकर अपने परिवार के सदस्यों और अन्य श्रद्धालुओं को दवा का सेवन नहीं करने देते हैं वे कहते हैं आप मेरे साथ बठते हैं और यदि आपको कोई बीमारी है तो मुझे इसका पता चल जाता है और मैं इसे दूर कर देता हूं। लेकिन सभी लोगों का रोग दूर नहीं होता उनकी एक बीवी हफसत बेल्लो मोहम्मद कहती हैं कि उनके दो बच्चों की मौत हो गई थी लेकिन साथ ही उनका यह भी कहना है कि अल्लाह ने कहा कि उन बच्चों के जाने का वक्त आ गया है।
मूल समाचार यहाँ मौजूद है।
पूर्व में शिक्षक और इस्लाम के प्रचारक रह चुके अबूबकर कहते हैं कि उनकी बीवियों ने बीमारियों से निजात दिलाने की उनकी शोहरत के कारण ही उन्हें चुना है। वे कहते हैं, ‘मैं बीवियों की खोज में नहीं जाता बल्कि वे ही मेरे पास आती है’ लेकिन नाइजीरियो के इस्लामी अधिकारियों ने अबूबकर के इस दावे को नहीं मानते हुए उनके परिवार को एक ‘पंथ’ करार दिया है। इस्लाम के ज्यादातर विद्वानों का मानना है कि यदि एक व्यक्ति अपनी बीवियों को समान रूप से आदर और सम्मान दे सकने के काबिल है तो वह चार औरतों से शादी कर सकता है। लेकिन अबूबकर कहते हैं कि चार से अधिक शादियां करने पर कुरान में किसी प्रकार के दंड की बात नहीं की गई है जैसे ही अबूबकर अपने घर से बाहर आए उनकी बीवियां और बच्चे उनका गुणगान करने लगे उनकी ज्यादातर बीवियों की उम्र 25 वर्ष से भी कम है उनकी बीवियों ने बताया कि विभिन्न बीमारियों से छुटकारा पाने के लिए वे अबूबकर के पास सहायता लेने के लिए गई और उनकी बीमारियां ठीक हो गई, इसी दौरान अबूबकर से उनकी मुलकात हुई।
शरीफत बेल्लो अबूबकर ने बताया जैसे ही मैं उनसे मिली मेरे सिर का दर्द जाता रहा अल्लाह ने मुझे बताया कि उनसे शादी करने का समय आ गया है अल्लाह का शुक्र है कि मैं अब उनकी बीवी हूं। शादी के वक्त शरीफत बेल्लो की उम्र 25 वर्ष थी और अबूबकर और उनकी बीवियां कोई काम नहीं करती है। इतने बड़े परिवार के गुजारे के लिए प्रत्यक्षत उनके पास कोई साधन भी नहीं दिखता हर भोजन के समय उनके यहां 12-12 किलो के तीन बर्तन भर कर चावल इस्तेमाल होते हैं और हर दिन के खाने का खर्च 915 डॉलर या 457 पाउंड का खर्च आता है। वे यह बताने से इंकार करते हैं कि कैसे वे अपने परिवार के लिए खाने और पहनने की व्यवस्था करते हैं। वे कहते है सब अल्लाह का फजल है उनकी एक बीवी का कहना है कि अबूबकर कभी-कभी अपने बच्चों को भीख मांग कर लाने के लिए कहते हैं।
अबूबकर अपने परिवार के सदस्यों और अन्य श्रद्धालुओं को दवा का सेवन नहीं करने देते हैं वे कहते हैं आप मेरे साथ बठते हैं और यदि आपको कोई बीमारी है तो मुझे इसका पता चल जाता है और मैं इसे दूर कर देता हूं। लेकिन सभी लोगों का रोग दूर नहीं होता उनकी एक बीवी हफसत बेल्लो मोहम्मद कहती हैं कि उनके दो बच्चों की मौत हो गई थी लेकिन साथ ही उनका यह भी कहना है कि अल्लाह ने कहा कि उन बच्चों के जाने का वक्त आ गया है।
मूल समाचार यहाँ मौजूद है।
Monday, 28 July 2008
टाई लगायी, मूंछ कटायी, फिर भी मामला गड़बड़ है
शहरी लुक देने के चक्कर में बीवी ने उसकी शानदार मूंछे कटवा दी। गांव में उसे टाई लगाकर घूमने के लिए दबाव बनाती है। गांव के युवक को शहरी बनाने के सपने देखने वाली एक ब्याहता अपने पति और ससुरलियों पर मारपीट करने का आरोप लगा रही है, जबकि उसके पति ने महिला पर ही आरोप लगाते हुए कहा कि उसे शहरी बनाने के चक्कर और घरेलू काम न करने के चलते विवाद हो रहा है। फिलहाल मामला परिवार परामर्श केंद्र में है।
अमर उजाला में आयी इस ख़बर के मुताबिक, विजयनगर, गाजियाबाद के रहने वाले इस युवक की शादी 30 जनवरी 2005 को दिल्ली निवासी युवती के साथ हुई थी। युवती का आरोप है कि शादी के बाद से ही उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाने लगा। उससे दहेज की मांग की गई, मांग पूरी न होने पर उसके साथ मारपीट की गई। इन हालातों में उसका ससुराल में रहाना दूभर हो गया। जिसके चलते वह काफी दिनों से अपने मायके में रह रही है।
दूसरी तरफ, विवाहिता का पति दूसरा ही मामला बता रहा है। उसका कहना है की उसकी बीवी न तो ढंग का खाना बना पाती है, न ही कोई घरेलू काम करती है। साथ ही गांव के माहौल में रहने के बावूजद उसे शहरी लुक देने के चक्कर में लगी रहती है। वह मूंछे रखता था, उन्हें उसने कटवा दिया। इतना ही नहीं, टाई लगाने के लिए जोर देती है। कई बार वह लगा भी चुका है, लेकिन बार-बार उसके लिए यह सब करना बहुत मुश्किल है। गांव के माहौल में उसे यह सब करना बहुत अजीब लगता है। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए। परिवार परामर्श केंद्र के काउंसलरों के मुताबिक, दोनों पक्ष समझाने पर साथ रहने के राजी हो गए हैं। अब कुछ शर्तों के तहत ब्याहता को उसके ससुराल भेजा जाएगा।
अमर उजाला में आयी इस ख़बर के मुताबिक, विजयनगर, गाजियाबाद के रहने वाले इस युवक की शादी 30 जनवरी 2005 को दिल्ली निवासी युवती के साथ हुई थी। युवती का आरोप है कि शादी के बाद से ही उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाने लगा। उससे दहेज की मांग की गई, मांग पूरी न होने पर उसके साथ मारपीट की गई। इन हालातों में उसका ससुराल में रहाना दूभर हो गया। जिसके चलते वह काफी दिनों से अपने मायके में रह रही है।
दूसरी तरफ, विवाहिता का पति दूसरा ही मामला बता रहा है। उसका कहना है की उसकी बीवी न तो ढंग का खाना बना पाती है, न ही कोई घरेलू काम करती है। साथ ही गांव के माहौल में रहने के बावूजद उसे शहरी लुक देने के चक्कर में लगी रहती है। वह मूंछे रखता था, उन्हें उसने कटवा दिया। इतना ही नहीं, टाई लगाने के लिए जोर देती है। कई बार वह लगा भी चुका है, लेकिन बार-बार उसके लिए यह सब करना बहुत मुश्किल है। गांव के माहौल में उसे यह सब करना बहुत अजीब लगता है। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए। परिवार परामर्श केंद्र के काउंसलरों के मुताबिक, दोनों पक्ष समझाने पर साथ रहने के राजी हो गए हैं। अब कुछ शर्तों के तहत ब्याहता को उसके ससुराल भेजा जाएगा।
Thursday, 3 July 2008
बुरे चरित्र के पुरूषों का सेक्स जीवन, बेहतर होता है
अपने आप को अच्छे कहे जाने वाले पुरूषों का एक आम रोना रहा है कि महिलाएं उन्हें भाव नहीं देतीं और बुरे के 'चंगुल' में फंस जाती हैं। अब वैज्ञानिक शोध में भी यह बात साबित हो गई है कि असामाजिक व्यक्तित्व वाले पुरुष जिंदगी में और कुछ हासिल करें या न करें, लड़कियों, महिलायों को आकर्षित करने के मामले में वे बाजी मार लेते हैं। New Scientist पत्रिका के मुताबिक अमेरिकी शोधकर्तायों ने 57 देशों में करीब 35 हजार लोगों पर कराए गए सर्वेक्षण में नतीजा निकाला कि आक्रामक, कठोर ह्रदय, चालाक और मतलबी स्वभाव के लोगों का सेक्स जीवन बेहतर होता है। अध्ययन के नतीजों को हाल ही में जापान के क्योटो शहर में आयोजित Human Behavior and Evolution Society की एक सभा में पेश किया गया।
New Mexico State University के शोधकर्ता और अध्ययन समूह के अगुआ पीटर जॉनसन के मुताबिक बिंदास जिंदगी जीने वाले इन लोगों के चरित्र की नुमाइंदगी कुछ हद तक काल्पनिक चरित्र, जेम्स बॉन्ड करता है। ऐसे लोग जो समझौते करने में यकीन नहीं रखते और न ही अंतर्मुखी होते हैं। नए-नए काम करना उनकी फितरत होती है, जिनमें लोगों को मारना और नई औरतें हासिल करना भी शामिल है। ऐसे लोग कम समयावधि के रिश्तों में यकीन रखते हैं। ये दूसरों की बीवियों या प्रेमिकाओं पर नजर रखते हैं और उनसे थोड़े समय के लिए संबंध बनाने की कोशिश करते हैं।
अध्ययन की खास बात यह है कि यह सिर्फ पुरुषों पर लागू होती है। यानी इसी चरित्र की महिलाएं, सेक्स जीवन के मामले में कामयाबी हासिल नहीं कर पातीं। यह भी कहा गया कि अच्छे चरित्र के पुरूषों को निराश होने की जरूरत नहीं। पिछली कई अवसरों पर यह बात साबित हो चुकी है कि लड़कियां थोड़े वक्त या किसी खास मकसद के लिए भले ही किसी को चुन लें, लेकिन जिंदगी में व्यवस्थित उन्हीं पुरुषों के साथ होना चाहती हैं, जो अच्छे चरित्र के हों और उनका ख्याल रख सकें.
New Mexico State University के शोधकर्ता और अध्ययन समूह के अगुआ पीटर जॉनसन के मुताबिक बिंदास जिंदगी जीने वाले इन लोगों के चरित्र की नुमाइंदगी कुछ हद तक काल्पनिक चरित्र, जेम्स बॉन्ड करता है। ऐसे लोग जो समझौते करने में यकीन नहीं रखते और न ही अंतर्मुखी होते हैं। नए-नए काम करना उनकी फितरत होती है, जिनमें लोगों को मारना और नई औरतें हासिल करना भी शामिल है। ऐसे लोग कम समयावधि के रिश्तों में यकीन रखते हैं। ये दूसरों की बीवियों या प्रेमिकाओं पर नजर रखते हैं और उनसे थोड़े समय के लिए संबंध बनाने की कोशिश करते हैं।
अध्ययन की खास बात यह है कि यह सिर्फ पुरुषों पर लागू होती है। यानी इसी चरित्र की महिलाएं, सेक्स जीवन के मामले में कामयाबी हासिल नहीं कर पातीं। यह भी कहा गया कि अच्छे चरित्र के पुरूषों को निराश होने की जरूरत नहीं। पिछली कई अवसरों पर यह बात साबित हो चुकी है कि लड़कियां थोड़े वक्त या किसी खास मकसद के लिए भले ही किसी को चुन लें, लेकिन जिंदगी में व्यवस्थित उन्हीं पुरुषों के साथ होना चाहती हैं, जो अच्छे चरित्र के हों और उनका ख्याल रख सकें.
Scientists have now confirmed what good guys always knew: bad boys get the girls.
Researchers have shown that across cultures it really does pay to have a mean streak - with callous, self-obsessed, deceitful men proving the biggest hit with the opposite sex.
The findings, reported at the Human Behaviour and Evolution Society meeting in Kyoto, Japan, may help to explain why anti-social personality traits, known as the 'dark triad', could have an upside: a prolific sex life.
Monday, 30 June 2008
तलाक के बाद, आखिरकार 1 करोड़ 63 लाख रूपयों में बिक गया वो
पत्नी से तलाक के बाद ऑस्ट्रेलिया में इंटरनेट के जरिये अपने घर, नौकरी और अपने मित्रों से मुलाकात के मौके सहित अपना जीवन बेच रहे इयान ने कहा कि उसने अपने जीवन को 399 हजार ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (383.23 हजार अमेरिकी डॉलर या 1,63,68,039 भारतीय रूपयों) में इसे बेचा है।
ब्रिटेन में पैदा हुए इयान अशर (44) ने पश्चिमी शहर पर्थ में अपना घर, कार, मोटरसाइकिल, जेट स्की और अपना अन्य सामान बेचने का फैसला किया। लाइफ पैकेज में न सिर्फ कपड़ों और डीवीडी जैसे संग्रह शामिल था बल्कि कारपेट सेल्समैन की उसकी पुरानी नौकरी और उसके कुछ मित्रों से मुलाकात का मौका भी शामिल था। इंटरनेट नीलामी साइट इबे पर सात दिन चली बिक्री के बाद अशर ने कहा, 'अंतिम कीमत 399 हजार ऑस्ट्रेलियाई डॉलर रही। यह पूछने पर कि कीमत के बारे में वह क्या महसूस करता है उसने कहा कि यह काफी अच्छी है।
इयान के अन्तिम संदेश, सहित अन्य ब्लॉग संदेश यहाँ देखे जा सकते हैं।
ब्रिटेन में पैदा हुए इयान अशर (44) ने पश्चिमी शहर पर्थ में अपना घर, कार, मोटरसाइकिल, जेट स्की और अपना अन्य सामान बेचने का फैसला किया। लाइफ पैकेज में न सिर्फ कपड़ों और डीवीडी जैसे संग्रह शामिल था बल्कि कारपेट सेल्समैन की उसकी पुरानी नौकरी और उसके कुछ मित्रों से मुलाकात का मौका भी शामिल था। इंटरनेट नीलामी साइट इबे पर सात दिन चली बिक्री के बाद अशर ने कहा, 'अंतिम कीमत 399 हजार ऑस्ट्रेलियाई डॉलर रही। यह पूछने पर कि कीमत के बारे में वह क्या महसूस करता है उसने कहा कि यह काफी अच्छी है।
इयान के अन्तिम संदेश, सहित अन्य ब्लॉग संदेश यहाँ देखे जा सकते हैं।
Sunday, 29 June 2008
प्यार, सेक्स, विवाह के लिए हल्की दाढ़ी वालों को पसंद करती हैं महिलायें
बहुत से पुरूष महिलाओं को रिझाने के लिए दाढ़ी मूंछ मुंडा देते हैं, लेकिन एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि महिलाएं प्रेम, सेक्स और शादी के लिए उन पुरूषों को अधिक पसंद करती हैं जिनकी ठुड्डी पर हल्की दाढ़ी होती है। इस विषय को लेकर ब्रिटेन में अनुसंधानकर्ताओं ने एक शोध किया और पाया कि महिलाएं ‘क्लीन शेव’ या पूरी दाढ़ी रखने वाले पुरूषों की तुलना में उन पुरूषों की तरफ अधिक आकर्षित होती हैं जो हल्की दाढ़ी रखते हैं।
ब्रिटिश अखबार द संडे टेलीग्राफ में अग्रणी अनुसंधानकर्ता और नोर्थुम्ब्रिया यूनिवर्सिटी के डाक्टर निक नीव के हवाले से कहा गया है, पुरूषों का हल्का दाढ़ी युक्त चेहरा सेक्स का एक शक्तिशाली संकेतक है और यह स्पष्ट तौर पर सेक्स परिपक्वता की जैविक पहचान भी है। अपने अध्ययन में अनुसंधानकर्ताओं ने नवीनतम कंप्यूटर प्रौघोगिकी का इस्तेमाल कर 15 पुरूषों की तस्वीरों को विभिन्न आयामों में देखा। इन तस्वीरों में क्लीन शेव, हल्की दाढ़ी, भारी भरकम दाढ़ी और पूरी दाढ़ी रखने वाले पुरूषों की तस्वीरों को शामिल किया गया। ये तस्वीरें 76 महिलाओं को दिखाई गईं और उनसे पूछा गया कि वे इनमें से किस पुरूष को कितना पसंद करती हैं। वे इनमें से किस व्यक्ति को कम या दीर्घावधि के लिए अपना हमसफर बनाना चाहेंगी। इस अध्ययन से पता चला कि महिलाओं ने प्यार, सेक्स और विवाह के लिए उन लोगों को सबसे अधिक पसंद किया जिनके चेहरे पर हल्की दाढ़ी थी। अध्ययन के परिणाम Personality and Individual Differences पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।
The Sunday Telegraph की खबर यहाँ देखी जा सकती है।
ब्रिटिश अखबार द संडे टेलीग्राफ में अग्रणी अनुसंधानकर्ता और नोर्थुम्ब्रिया यूनिवर्सिटी के डाक्टर निक नीव के हवाले से कहा गया है, पुरूषों का हल्का दाढ़ी युक्त चेहरा सेक्स का एक शक्तिशाली संकेतक है और यह स्पष्ट तौर पर सेक्स परिपक्वता की जैविक पहचान भी है। अपने अध्ययन में अनुसंधानकर्ताओं ने नवीनतम कंप्यूटर प्रौघोगिकी का इस्तेमाल कर 15 पुरूषों की तस्वीरों को विभिन्न आयामों में देखा। इन तस्वीरों में क्लीन शेव, हल्की दाढ़ी, भारी भरकम दाढ़ी और पूरी दाढ़ी रखने वाले पुरूषों की तस्वीरों को शामिल किया गया। ये तस्वीरें 76 महिलाओं को दिखाई गईं और उनसे पूछा गया कि वे इनमें से किस पुरूष को कितना पसंद करती हैं। वे इनमें से किस व्यक्ति को कम या दीर्घावधि के लिए अपना हमसफर बनाना चाहेंगी। इस अध्ययन से पता चला कि महिलाओं ने प्यार, सेक्स और विवाह के लिए उन लोगों को सबसे अधिक पसंद किया जिनके चेहरे पर हल्की दाढ़ी थी। अध्ययन के परिणाम Personality and Individual Differences पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।
The Sunday Telegraph की खबर यहाँ देखी जा सकती है।
Saturday, 28 June 2008
शादीशुदा लोगों से ज्यादा तलाकशुदा
शादी के लायक लोगों की संख्या बढ़ रही है, पर शादी करने की इच्छा रखने वालों की संख्या में कमी आ रही है। पिछले कुछ सालों में तलाक के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। यही कारण है कि 16 वर्ष से अधिक आयु के ज्यादातर लोग या तो अकेले हैं, तलाकशुदा हैं या फिर अपने साथी को खो चुके हैं। ब्रिटेन में तलाकशुदा लोगों की संख्या शादीशुदा लोगों से अधिक है। हाल ही में जारी आधिकारिक आंकड़े यही साबित करते हैं। ऑफिस ऑफ नेशनल स्टेटिस्टिक्स (ओएनएस) के अनुसार वर्ष 2006 में इंग्लैंड और वेल्स में 2,36,980 शादियां हुईं, जो वर्ष 1895 से लेकर आज तक का न्यूनतम आंकड़ा है।
वर्ष 2005 के आंकड़ों के मुताबिक इंग्लैंड और वेल्स के शादीशुदा वयस्कों की संख्या घटकर 50.3 प्रतिशत पर पहुंच गई है। शादीशुदा जोड़ों की संख्या में वर्ष 1997 से लगातार गिरावट आ रही है और वर्ष 2006 तक शादीशुदा जोड़ों का अनुपात गिरकर आधे से भी कम रह गया है। हालांकि वर्ष 1995 में कुल जनसंख्या में शादीशुदा जोड़ों का आंकड़ा 56 प्रतिशत था। उसके बाद इसमें प्रतिवर्ष 1,00,000 से 1,50,000 की गिरावट आई। ओएनएस की रिपोर्ट के अनुसार इसका एक कारण अधिक उम्र में शादी होना भी है। हाल के अनुमान के मुताबिक शादीशुदा लोगों का अनुपात गिरेगा, लेकिन एक निश्चित अनुपात में लोग शादी भी करेंगे।
सिविटास थिंक टैंक के रॉबर्ट व्हेलान कहते हैं कि कम शादी होने के चलन में कोई कमी आती नहीं दिख रही है। भविष्य में बहुत ही कम लोग शादीशुदा जोड़े के रूप में साथ रहेंगे। इस चलन के बुरे प्रभाव खराब स्वास्थ्य, कम आमदनी, नशीली दवाओं, शराब का सेवन, अपराध तथा असामाजिक व्यवहार के रूप में नजर आते हैं। व्हेलान कहते हैं कि यह दुर्भाज्ञपूर्ण है कि सरकार में किसी को इस प्रवत्ति की कोई परवाह नहीं है।
वर्ष 2005 के आंकड़ों के मुताबिक इंग्लैंड और वेल्स के शादीशुदा वयस्कों की संख्या घटकर 50.3 प्रतिशत पर पहुंच गई है। शादीशुदा जोड़ों की संख्या में वर्ष 1997 से लगातार गिरावट आ रही है और वर्ष 2006 तक शादीशुदा जोड़ों का अनुपात गिरकर आधे से भी कम रह गया है। हालांकि वर्ष 1995 में कुल जनसंख्या में शादीशुदा जोड़ों का आंकड़ा 56 प्रतिशत था। उसके बाद इसमें प्रतिवर्ष 1,00,000 से 1,50,000 की गिरावट आई। ओएनएस की रिपोर्ट के अनुसार इसका एक कारण अधिक उम्र में शादी होना भी है। हाल के अनुमान के मुताबिक शादीशुदा लोगों का अनुपात गिरेगा, लेकिन एक निश्चित अनुपात में लोग शादी भी करेंगे।
सिविटास थिंक टैंक के रॉबर्ट व्हेलान कहते हैं कि कम शादी होने के चलन में कोई कमी आती नहीं दिख रही है। भविष्य में बहुत ही कम लोग शादीशुदा जोड़े के रूप में साथ रहेंगे। इस चलन के बुरे प्रभाव खराब स्वास्थ्य, कम आमदनी, नशीली दवाओं, शराब का सेवन, अपराध तथा असामाजिक व्यवहार के रूप में नजर आते हैं। व्हेलान कहते हैं कि यह दुर्भाज्ञपूर्ण है कि सरकार में किसी को इस प्रवत्ति की कोई परवाह नहीं है।
Wednesday, 25 June 2008
जो पांचों सवालों के सही उत्तर देगा, उसी को वह अपना वर चुनेगी।
शादी तो हर किसी की होती है, लेकिन वह इस कलियुग में स्वयंवर के माध्यम से अपने लिए वर ढूंढ़कर एक अलग मिसाल पेश करना चाहती है। स्वयंवर रचाने का निर्णय उसका अपना है। वह कुछ ऐसा करना चाहती है, जिसे सारी दुनिया याद रखे। त्रेतायुग में जनकपुर की राजकुमारी सीता के स्वयंवर की तरह यह स्वयंवर भी अनोखा होगा, लेकिन इसमें धनुष तोड़ने जैसी विशेष कला का प्रदर्शन नहीं होगा। अन्नपूर्णा के स्वयंवर में सम्मिलित हुए वरों से पांच सवाल पूछे जाएंगे। यह सवाल अभी गुप्त रखे गए हैं। आयोजन के दिन ही इसे सामने लाया जाएगा, जो वर पांचों सवालों के सही उत्तर देगा, उसी को अन्नपूर्णा अपना वर चुनेगी।
छत्तीसगढ़ में बालोद से 10 किमी दूर ग्राम घुमका में हल्बा समाज की, 13 सितंबर 1986 को जन्मी, अन्नपूर्णा के लिए स्वयंवर रचा जा रहा है। स्वयंवर समारोह में ऐसे वर सम्मिलित होंगे, जो अपने आपको अन्नपूर्णा के योग्य समझते हैं। स्वयंवर में भाग लेने वाले को पांच सवाल के जवाब तो देने ही होंगे, लेकिन इसके पहले उन्हें अपनी योग्यता का परिचय भी देना होगा। स्वयंवर की शर्त यह है कि युवक आदिवासी हल्बा समाज का ही हो। भंडारी गोत्र वाला युवक स्वयंवर में भाग नहीं ले सकेगा। वर की आयु कम से कम 22 और अधिकतम 26 वर्ष हो। स्वयंवर में बालोद, गुंडरदेही, लोहारा, गुरूर, धमतरी इन पांचों तहसील के ही युवक भाग लेंगे। स्वयंवर में भाग लेने के इच्छुक युवक 3 जुलाई तक ग्राम घुमका में आयोजक परिवार से संपर्क कर अपनी इच्छा व्यक्त कर सकते है।
अन्नपूर्णा के लिए योग्य वर का चुनाव स्वयंवर के माध्यम से हो,यह इच्छा माता पलटीन बाई और पिता रामरतन ठाकुर की भी थी। उनका परिवार रामचरित मानस कथा से काफी प्रभावित हैं, इसलिए वे भी इसका अनुकरण करते हुए सामान्य से हटकर कुछ अलग करने की चाह रखते हैं। पूरे गांव में उत्सवी माहौल होगा। स्वयंवर की खबर दूर-दूर तक पहुंच चुकी है। गली-गली में पंपलेट चिपकाया जा रहा है। लोगों में चर्चा होने लगी है। बड़ी संख्या में लोगों के आने की उम्मीद है। 8 जुलाई के दिन स्वयंवर आयोजित है। स्वयंवर समाप्ति के बाद सामाजिक रीति रिवाज एवं परंपरा अनुसार विवाह संपन्न कराया जायेगा।
(समाचार व चित्र दैनिक भास्कर से साभार)
छत्तीसगढ़ में बालोद से 10 किमी दूर ग्राम घुमका में हल्बा समाज की, 13 सितंबर 1986 को जन्मी, अन्नपूर्णा के लिए स्वयंवर रचा जा रहा है। स्वयंवर समारोह में ऐसे वर सम्मिलित होंगे, जो अपने आपको अन्नपूर्णा के योग्य समझते हैं। स्वयंवर में भाग लेने वाले को पांच सवाल के जवाब तो देने ही होंगे, लेकिन इसके पहले उन्हें अपनी योग्यता का परिचय भी देना होगा। स्वयंवर की शर्त यह है कि युवक आदिवासी हल्बा समाज का ही हो। भंडारी गोत्र वाला युवक स्वयंवर में भाग नहीं ले सकेगा। वर की आयु कम से कम 22 और अधिकतम 26 वर्ष हो। स्वयंवर में बालोद, गुंडरदेही, लोहारा, गुरूर, धमतरी इन पांचों तहसील के ही युवक भाग लेंगे। स्वयंवर में भाग लेने के इच्छुक युवक 3 जुलाई तक ग्राम घुमका में आयोजक परिवार से संपर्क कर अपनी इच्छा व्यक्त कर सकते है।
अन्नपूर्णा के लिए योग्य वर का चुनाव स्वयंवर के माध्यम से हो,यह इच्छा माता पलटीन बाई और पिता रामरतन ठाकुर की भी थी। उनका परिवार रामचरित मानस कथा से काफी प्रभावित हैं, इसलिए वे भी इसका अनुकरण करते हुए सामान्य से हटकर कुछ अलग करने की चाह रखते हैं। पूरे गांव में उत्सवी माहौल होगा। स्वयंवर की खबर दूर-दूर तक पहुंच चुकी है। गली-गली में पंपलेट चिपकाया जा रहा है। लोगों में चर्चा होने लगी है। बड़ी संख्या में लोगों के आने की उम्मीद है। 8 जुलाई के दिन स्वयंवर आयोजित है। स्वयंवर समाप्ति के बाद सामाजिक रीति रिवाज एवं परंपरा अनुसार विवाह संपन्न कराया जायेगा।
(समाचार व चित्र दैनिक भास्कर से साभार)
Tuesday, 24 June 2008
प्यार और शादी की कोई उम्र नहीं
उज्जैन के शिवशक्तिनगर निवासी ८४ वर्षीय शंकरसिंह ने 57 वर्षीय विमलाबाई से शादी कर यह बात सिद्ध कर दी है कि प्यार और शादी की कोई उम्र नहीं होती है। ९ जून को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी कर यह वृद्ध युगत हमेशा के लिए एक-दूसरे के हो गए। दोनों कई सालों से एकाकी जिंदगी जी रहे थे। अकेलेपन को दूर करने के लिए जीवन की सांझ में दोनों ने साथ रहने का फैसला किया। दैनिक भास्कर में आयी ख़बर के अनुसार, शंकरसिंह और विमलाबाई दोनों का घर शिवशक्तिनगर में ही है। विमलाबाई के पहले पति संग्रामसिंह की मृत्यु १९९४ में हुई। वह तब से ही अकेली रह रही थी। शंकरसिंह की हालत भी ऐसी ही थी। उनकी पत्नी नर्मदाबाई की मृत्यु २००७ में हुई। दोनों की कोई संतान भी नहीं थी। शंकरसिंह एमपीईबी से रिटायर्ड हैं। दोनों का गुजारा शंकर की पेंशन से होगा।
शंकरसिंह की पत्नी नर्मदाबाई अंतिम दिनों में बीमार रहती थीं। पड़ोस में रहने की वजह से विमलाबाई नर्मदाबाई की देख-रेख करने के लिए शंकरसिंह के घर आती-जाती थी। नर्मदाबाई की मृत्यु के बाद शंकरसिंह अकेले रह गए। दोनों में आपसी समझ अच्छी थी, अत: शादी का निर्णय कर लिया। ६ मई को वकील काजी अखलाक एहमद के माध्यम से एडीएम कोर्ट में शादी की अर्जी दी गई। वहां से ९ जून को दोनों की शादी मंजूर हुई। दोनों ने शपथ पत्र में जीवन के एकाकीपन को शादी की वजह बताया। उन्होंने बताया कि दोनों के जीवनसाथी अब इस दुनिया में नहीं है और कोई संतान भी नहीं है, अत: वे एक-दूसरे के साथ जीवन के अंतिम दिन गुजारना चाहते हैं।
शंकरसिंह की पत्नी नर्मदाबाई अंतिम दिनों में बीमार रहती थीं। पड़ोस में रहने की वजह से विमलाबाई नर्मदाबाई की देख-रेख करने के लिए शंकरसिंह के घर आती-जाती थी। नर्मदाबाई की मृत्यु के बाद शंकरसिंह अकेले रह गए। दोनों में आपसी समझ अच्छी थी, अत: शादी का निर्णय कर लिया। ६ मई को वकील काजी अखलाक एहमद के माध्यम से एडीएम कोर्ट में शादी की अर्जी दी गई। वहां से ९ जून को दोनों की शादी मंजूर हुई। दोनों ने शपथ पत्र में जीवन के एकाकीपन को शादी की वजह बताया। उन्होंने बताया कि दोनों के जीवनसाथी अब इस दुनिया में नहीं है और कोई संतान भी नहीं है, अत: वे एक-दूसरे के साथ जीवन के अंतिम दिन गुजारना चाहते हैं।
Monday, 16 June 2008
बीवी से परेशान होकर जेल में रहना स्वीकारा
इटली में एक शख्स अपनी पत्नी से इस कदर परेशान था कि उसने घर में रहने के बजाय जेल में रहना पसंद किया। दरअसल, लुइगी फॉलेरियो (45) को चोरी के जुर्म में दो साल की सजा हुई थी। जेल के अधिकारियों ने सजा का दूसरा साल उसे घर में नजरबंदी की हालत में गुजारने को कहा। लेकिन घर जाने के दो दिन बाद ही फॉलेरियो वहां से भागकर पोंटे सैन लिअनार्दो जेल पहुंच गया।
उसने अधिकारियों से गुहार लगाई कि मुझे फिर जेल के अपने पहले वाले सेल में भेज दिया जाए। मैं घर में अपनी पत्नी के साथ नहीं रह सकता। जेल के वार्डन से उसने कहा कि मेरी पत्नी कभी लड़ना-झगड़ना नहीं छोड़ सकती।
उसने अधिकारियों से गुहार लगाई कि मुझे फिर जेल के अपने पहले वाले सेल में भेज दिया जाए। मैं घर में अपनी पत्नी के साथ नहीं रह सकता। जेल के वार्डन से उसने कहा कि मेरी पत्नी कभी लड़ना-झगड़ना नहीं छोड़ सकती।
Sunday, 15 June 2008
पुत्र की भावनाएँ पिता के लिए, उर्फ फादर्स डे
इस पितृ-दिवस (Father's Day) पर पिछले साल की पोस्ट याद हो आयी। शायद कईयों ने न देखी हो इसलिए पुन: प्रस्तुत है। आप भी आनंद उठाईये।
एक बेटा अपनी उम्र में क्या सोचता है?
४ साल - मेरे पापा महान हैं।
६ साल - मेरे पापा सब कुछ जानते हैं।
१० साल - मेरे पापा अच्छे हैं, लेकिन गुस्सैल हैं।
१२ साल - मेरे पापा, मेरे लिए बहुत अच्छे थे, जब मैं छोटा था।
१४ साल - मेरे पापा चिड़चिड़ाते हैं।
१६ साल - मेरे पापा ज़माने के हिसाब से नहीं चलते।
१८ साल - मेरे पापा हर बात पर नुक्ताचीनी करते हैं।
२० साल - मेरे पापा को तो बर्दाश्त करना मुश्किल होता जा रहा है, पता नही माँ इन्हें कैसे बर्दाश्त करती है?
२५ साल - मेरे पापा तो हर बात पर एतराज़ करते हैं।
३० साल - मुझे अपने बेटे को संभालना तो मुश्किल होता जा रहा है। जब मैं छोटा था, तब मैं अपने पापा से बहुत डरता था।
४० साल - मेरे पापा ने मुझे बहुत अनुशासन के साथ पाल-पोस कर बड़ा किया, मैं भी अपने बेटे को वैसा ही सिखाऊंगा।
४५ साल - मैं तो हैरान हूँ किस तरह से मेरे पापा ने मुझको इतना बड़ा किया।
५० साल - मेरे पापा ने मुझे पालने में काफी मुश्किलें ऊठाईं। मुझे तो तो बेटे को संभालना मुश्किल हो रहा है।
५५ साल - मेरे पापा कितने दूरदर्शी थे और उन्होंने मेरे लिए सभी चीजें कितनी योजना से तैयार की। वे अपने आप में अद्वितीय हैं, उनके जैसा कोई भी नहीं।
६० साल - मेरे पापा महान हैं।
एक बेटा अपनी उम्र में क्या सोचता है?
४ साल - मेरे पापा महान हैं।
६ साल - मेरे पापा सब कुछ जानते हैं।
१० साल - मेरे पापा अच्छे हैं, लेकिन गुस्सैल हैं।
१२ साल - मेरे पापा, मेरे लिए बहुत अच्छे थे, जब मैं छोटा था।
१४ साल - मेरे पापा चिड़चिड़ाते हैं।
१६ साल - मेरे पापा ज़माने के हिसाब से नहीं चलते।
१८ साल - मेरे पापा हर बात पर नुक्ताचीनी करते हैं।
२० साल - मेरे पापा को तो बर्दाश्त करना मुश्किल होता जा रहा है, पता नही माँ इन्हें कैसे बर्दाश्त करती है?
२५ साल - मेरे पापा तो हर बात पर एतराज़ करते हैं।
३० साल - मुझे अपने बेटे को संभालना तो मुश्किल होता जा रहा है। जब मैं छोटा था, तब मैं अपने पापा से बहुत डरता था।
४० साल - मेरे पापा ने मुझे बहुत अनुशासन के साथ पाल-पोस कर बड़ा किया, मैं भी अपने बेटे को वैसा ही सिखाऊंगा।
४५ साल - मैं तो हैरान हूँ किस तरह से मेरे पापा ने मुझको इतना बड़ा किया।
५० साल - मेरे पापा ने मुझे पालने में काफी मुश्किलें ऊठाईं। मुझे तो तो बेटे को संभालना मुश्किल हो रहा है।
५५ साल - मेरे पापा कितने दूरदर्शी थे और उन्होंने मेरे लिए सभी चीजें कितनी योजना से तैयार की। वे अपने आप में अद्वितीय हैं, उनके जैसा कोई भी नहीं।
६० साल - मेरे पापा महान हैं।
Friday, 13 June 2008
नारी को भोग-वस्तु समझने/ मानने/ पुकारने वाले इसे न पढ़ें
हालांकि यहाँ उल्लेख करना ठीक नहीं लगा, फिर सोचा गया कि भई, परिवार के साथ पति-पत्नी भी तो जुडा है यहाँ! बात यह है कि एक सर्वे किया गया -'महिलाओं को सबसे ज्यादा पसंद क्या है ?' अगर जवाब शॉपिंग हो तो आप सहमत होंगे। लेकिन ठहरिये, सुनिए ध्यान से, क्योंकि शॉपिंग के लिए उनकी दीवानगी की हद यहां तक है कि वे शॉपिंग को सेक्स से ज्यादा महत्व देती हैं। एक सर्वे के नतीजे बताते हैं कि महिलाएं उसी तरह शॉपिंग के बारे में सोचती रहती हैं जिस तरह पुरुष सेक्स के बारे में सोचते हैं।
19 से 45 साल की 778 महिलाओं पर किए गए इस सर्वे में पता चला कि 74 परसेंट महिलाएं हर मिनट में एक बार शॉपिंग के बारे में सोचती हैं। इतना ही नहीं, हैरतअंगेज बात यह है कि महिलाओं का कहना है कि वे अपने पार्टनर के साथ वक्त बिताने से ज्यादा शॉपिंग करना पसंद करेंगी। महिलाएं तो यहां तक कहती हैं कि वे अपनी शॉपिंग के बारे में अपने पार्टनर को नहीं बतातीं ताकि उनके खर्च का पता ना चल सके।
इससे पहले कुछ सर्वे यह बता चुके हैं कि पुरुष हर 52 सेकंड्स में एक बार सेक्स के बारे में सोचते हैं जबकि महिलाएं पूरे दिन में एक बार।
ऑनलाइन फैशन मैग्जीन कॉस्मोपॉलिटन के इस सर्वे के मुताबिक हर पांच में दो महिलाओं ने कहा कि वे जूतों और बैग्स की अडिक्ट हैं और उन्हीं के बारे में सोचती हैं। हर दस में से एक से ज्यादा महिलाएं एक्सेसरीज या मेक-अप के बारे में सोचती रहती हैं। सर्वे में शामिल महिलाएं अपनी इनकम का औसतन 30 फीसदी हिस्सा कपड़ों पर खर्च कर देती हैं। इसका दिलचस्प पहलू यह है कि मनोवैज्ञानिक इस बात को अच्छा नहीं मानते। यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लैमॉर्गन की साइकॉलजिस्ट जेन प्रिंस के मुताबिक लोग उन्हीं बातों के बारे में सोचते हैं जिनसे उन्हें खुशी मिलती है, लेकिन हर मिनट में एक बार किसी चीज के बारे में सोचना लत की निशानी है।
19 से 45 साल की 778 महिलाओं पर किए गए इस सर्वे में पता चला कि 74 परसेंट महिलाएं हर मिनट में एक बार शॉपिंग के बारे में सोचती हैं। इतना ही नहीं, हैरतअंगेज बात यह है कि महिलाओं का कहना है कि वे अपने पार्टनर के साथ वक्त बिताने से ज्यादा शॉपिंग करना पसंद करेंगी। महिलाएं तो यहां तक कहती हैं कि वे अपनी शॉपिंग के बारे में अपने पार्टनर को नहीं बतातीं ताकि उनके खर्च का पता ना चल सके।
इससे पहले कुछ सर्वे यह बता चुके हैं कि पुरुष हर 52 सेकंड्स में एक बार सेक्स के बारे में सोचते हैं जबकि महिलाएं पूरे दिन में एक बार।
ऑनलाइन फैशन मैग्जीन कॉस्मोपॉलिटन के इस सर्वे के मुताबिक हर पांच में दो महिलाओं ने कहा कि वे जूतों और बैग्स की अडिक्ट हैं और उन्हीं के बारे में सोचती हैं। हर दस में से एक से ज्यादा महिलाएं एक्सेसरीज या मेक-अप के बारे में सोचती रहती हैं। सर्वे में शामिल महिलाएं अपनी इनकम का औसतन 30 फीसदी हिस्सा कपड़ों पर खर्च कर देती हैं। इसका दिलचस्प पहलू यह है कि मनोवैज्ञानिक इस बात को अच्छा नहीं मानते। यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लैमॉर्गन की साइकॉलजिस्ट जेन प्रिंस के मुताबिक लोग उन्हीं बातों के बारे में सोचते हैं जिनसे उन्हें खुशी मिलती है, लेकिन हर मिनट में एक बार किसी चीज के बारे में सोचना लत की निशानी है।
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पार्टनर,
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