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Thursday 29 November, 2007

फतवा : पति को पीट सकती हैं महिलायें !

एक मुस्लिम महिला अपनी हिफाजत के लिए अपने पति द्वारा मारे जाने पर जवाब में पलट कर उसे भी मार सकती है। ये फतवा लेबनान के एक बड़े शिया मौलाना ने मंगलवार को इस्लाम के पुरुष प्रधान समाज में जारी किया है।

एपी की खबर के अनुसार, आयतुल्लाह मोहम्मद हुसैन फदल्लाह ने ये फतवा (या आदेश) महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर दिया।

फदल्लाह ने अपने फतवे में कहा, “हमारा विचार है कि अगर एक पुरुष महिला के खिलाफ शारीरिक हिंसा करता है, और महिला जवाबी हमला किए बिना अपना बचाव नहीं कर सकती तो वह आत्मरक्षा में ऎसा कर सकती है।”

फदल्लाह ने अपने कार्यालय से जारी एक बयान में जोर देकर कहा है कि यद्यपि इस्लाम पुरुषों को अपने घरेलू मामलों में पत्नियों पर वरीयता देता है लेकिन “यह किसी भी हालत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा- यहां तक की बेइज्जती करने और उन्हें अपशब्द कहने की भी इजाजत नहीं देता। ”

लेबनान में शिया आबादी 12 लाख हैं और उनमें फदल्लाह को धार्मिक मामलों में उच्च स्थान हासिल है। उनके अनुयायी पूरे मध्य- पूर्व इलाके में हैं। पश्चिम उन्हें उनके हिज्बुल्लाह के साथ पूर्व में रहे रिश्तों की वजह से चरमपंथी मानता है। जबकि उन्होंने कई बार कई मुद्दों पर प्रगतिशील और अहिंसा का उदाहरण दिया है जिसकी वजह से उनके कुछ रुढ़िवादी समर्थक अचंभित हो जाते हैं।

फदल्लाह ने कुछ रुढ़िवादी मुस्लिम समाज में व्यभिचार के लिए महिला को जान से मारने की परंपरा की आलोचना की है। उन्होंने ये भी कहा है कि अगर एक आदमी किसी महिला के कानूनी और वैवाहिक अधिकारों को दबाने के लिए हिंसा का सहारा लेता है; जैसे कि वह घर में होनेवाले खर्चे में कटौती करता है,या फिर उससे शारीरिक संबंध रखने से बचता है, ऐसे में “उसके जवाब में पत्नी शादी के अनुबंध में किए गए करार से उसे वंचित कर सकती है। ”

फदल्लाह ने कहा कि पूरे संसार में औरतों को हिंसा का निशाना बनाया जाता है जबकि, “ महिलायें सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर सरकारी और गैर-सरकारी दोनों स्थानों पर बड़े ओहदों पर पहुंच चुकी हैं। ”

उन्होंने जोर देकर कहा कि काम के स्थानों पर और परिवार में महिलाओं के अधिकारों का आदर करना चाहिए।

Wednesday 28 November, 2007

सजने-संवरने में जिंदगी के तीन साल गंवा दिए !

पत्नियों को शायद यह पसंद न आए लेकिन एक ताजा अध्ययन के मुताबिक महिलाएं घर के बाहर निकलने से पहले सजने-संवरने में अपनी जिंदगी के महत्वपूर्ण तीन साल गंवा देती हैं।

औसतन महिलाएं रात में किसी बड़े आयोजन में जाने से पहले सजने-संवरने में सवा घंटा लगाती हैं। इसमें आखिरी समय में पहने हुए कपड़े बदलना, कपड़े को ठीक तरह से आईने के सामने खड़े होकर निहारना और अपने पर्स या हैंडबैग में चीजें ढूंढना शामिल है।

यह जानकर हैरानी होगी कि आमतौर पर महिलाएं नहाने और पैरों से बाल साफ करने में 22 मिनट, चेहरे या शरीर पर मॉइश्चराइजर या सन्सक्रीन लगाने में सात मिनट, 23 मिनट बाल संवारने में और 14 मिनट मेक-अप करने में लगती हैं। सही मायने में कपड़े पहनने में वे केवल छह मिनट लगाती हैं।

महिलाएं आमतौर पर हर सुबह काम पर जाने से पहले तैयार होने में 40 मिनट लेती हैं और यह सजना-संवरना उनकी जिंदगी के दो साल और नौ महीने खा जाता है।

पुरुषों की बात करें तो वे अपनी साथी द्वारा हैंडबैग खरीदने और एक और जोड़ी जूते पहनकर देखते वक्त उनके इंतजार में अपनी जिंदगी के तीन महीने गंवा देते हैं।

पुरुषों को अपनी साथी महिलाओं के तैयार होने और कपड़े पहनकर देखने की पूरी प्रक्रिया में बाहर खड़े रहकर इंतजार में 17 मिनट और 25 सेकंड लगाना पड़ता है।

डेली मेल के मुताबिक यह अध्ययन शार्लोट न्यूबर्ट द्वारा किया गया है।

इस जानकारी के बाद यह जानकर हैरत नहीं होगी कि अध्ययन के मुताबिक 70 प्रतिशत पुरुष इस तरह इंतजार करने से चिढ़ते हैं और 10 फीसदी पुरुषों ने तो इस कारण संबंध ही खत्म कर दिए हैं।

Monday 26 November, 2007

आलू की EMI , जिन्न और अलादीन

अलादीन बीवी की डांट खाकर टहल रहा था समुद्र किनारे। बीवी ने डांटा था कि तुम्हारी हैसियत नहीं है आलू तक की, तो शादी किस मुंह से की?

आलू के भाव जहां जा चुके थे, उनकी ईएमआई चुकाना अलादीन के बूते के बाहर की बात थी। अलादीन हैरान-परेशान बैठा था कि एक बोतल में जिन्न जैसा कुछ दिखाई दिया। जिन्न ने पूछा- प्यारे अलादीन, शादी के बाद यूं तो सब परेशान रहते हैं, पर तेरी परेशानी कुछ ज्यादा वोल्टेज की लग रही है, क्या सेंसेक्स डूबने से तू व्यथित है? सेंसेक्स डूबने के बाद कई बंदे इधर डूबने आते हैं, पर अब यहां पानी नहीं बचा है। डूबने वाले पत्थर से टकरा जाते हैं, हाथ-पैर तुड़वा बैठते हैं। घर वाले डांटते हैं कि अगर मरना ही है, तो किसी मकान का लोन लेकर किसी बैंक के गुंडों के हाथों मरो ताकि कुछेक लाख का मुआवजा कोर्ट दिलवा दे। इतना शर्मदार तू है नहीं कि चुल्लू भर पानी में डूब जाए। वैसे जो शख्स आलू की ईएमआई अफोर्ड न कर पाए, उसे डूब मरना चाहिए पर चुल्लू भर पीने का पानी भी उस भाव होने लगा है कि उसकी ईएमआई भी तू अफोर्ड ना कर सकता।

खैर, बता तेरे लिए कोई हूर का जुगाड़मेंट करूं। मेरे पास हूरों को बुलाने की पावर है।
अलादीन हूरों का नाम सुनकर डर गया और पूछने लगा- ओफ्फो तो हूरों भी आलू खाएंगी। उनके आलुओं का पैसा कहां से आएगा। अबे जिन्न, हूर-शूर तलाशने के दिन गए। यह बता कि आलू का जुगाड़ तू कर सकता है क्या। जिन्न हंसने लगा और बोला- बेट्टा अब आलुओं की ईएमआई अफोर्ड करना अगर मेरे बूते में होता, तो काहे को डर कर मैं इस बोतल में रहता। घर जाते हुए शर्म आती है कि आलू तक अफोर्ड नहीं कर सकता। सो अब बोतल में रहता हूं। लेटेस्ट खबर यह है कि जिन्न को बोतल से निकालने की बजाय अलादीन खुद भी बोतल में घुसकर रहने का प्रयास कर रहा है।
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आलोक पुराणिक का लेखांश, नवभारत टाइम्स से साभार

Saturday 24 November, 2007

मैं इस घर को आग लगा दूंगा ...

कहना आसान है कि मैं ऐसे घर को आग लगा दूंगा, लेकिन बीबी से खुंदक होने पर ब्रिटेन के एक आदमी ने अपने घर को आग लगा दी। करीब साढ़े 3 लाख पाउंड (करीब ढाई करोड़ रुपये) का वह मकान तलाक के बाद उसकी पत्नी के पास जाने की संभावना थी।

बिल्डर गैरी हूली अपनी पत्नी मिशेल से गुस्से में यह बात पहले भी कई बार कह चुका था। पुलिस को वह अपनी वैन में सोया हुआ मिला। हालांकि उसका कहना है कि यह काम उसका नहीं है। लेकिन उसका भरोसा किसी को नहीं। उसने उस रात काफी बियर पी थी।

नवभारत टाइम्स की खबर है कि घटना की रात दोनों मिशेल की एक सहेली के यहां पार्टी में गए थे। वहां भी गैरी काफी खराब मूड में था। मिशेल डांस करने गई। उसे अपने पर्स का ख्याल रखने को कहा तो वह नाराज हो गया। हालांकि बाद में दोनों ने साथ डांस किया तो उसका गुस्सा कुछ कम हुआ था। लेकिन बाद में फिर झगड़ा हो गया।

झगड़े की वजह से रात को मिशेल घर भी नहीं लौटी। अपनी सहेली के घर ही रुक गई। सुबह पुलिस से ही सूचना मिली कि उसके घर में आग लग गई है। उसके सारे कपड़े और दूसरा सामान भी जल गया।

50 वर्षीय हूली ने कुछ दिन पहले ही अपने बंगले का साज सज्जा करवाई थी। बंगला मिशेल के नाम में था। पहली शादी से मिले इस बंगले के बीमे की किस्तें भी वही दे रही थी। महंगे जेवरात और 70 जोड़े जूतों का भी बीमा कराया हुआ था।

गैरी और मिशेल बचपन से एक दूसरे को जानते थे। शादी से पहले 2 साल तक इश्क चला था। लेकिन शादी होते ही इश्क हवा हो गया। पिछली जुलाई से कई बार दोनों ने अदालत के कहने पर साथ रहने की कोशिश की। लेकिन कामयाबी नहीं मिली। लगता है यह समस्या सर्वव्यापी है.

Sunday 11 November, 2007

बेटा तो फंसा है ...

नवभारत टाइम्स पर नजर आया

सास समझाए हो झगड़ा, मां का पाला तगड़ा
मायके की फटकार भाई को बुरी लगे
इस साइड बारंबार ससुराल में पति प्यार से समझाए
न बने मां बीबी की लड़ाई में दीवार
पति गर बोले तो मां दुखी, न बोले तो रात बेकार
तो हो कैसे समझौता, बेटा तो फंसा है यार

Wednesday 7 November, 2007

दो सगे भाइयों ने एक ही महिला से रचाई शादी

द्वापर युग में द्रौपदी ने पांच पांडवों को अपना पति स्वीकार किया था, वहीं कलयुग में कैलाशी के इस कदम से हर कोई हतप्रभ है। फर्क सिर्फ इतना है कि उसके पति पांच नहीं बल्कि दो होंगे, जिनके साथ वह महीने में 15-15 दिन रहेगी। इस बात की जानकारी गांव में हर किसी को थी।

रविवार दोपहर खेसरहा थाने से मात्र पचास मीटर दूर मुख्य सड़क पर एक छोटे से पक्के मकान में शादी की रस्में पूरी की गई। दूल्हा थे दो सगे भाई छोटे लाल और झीनक वर्मा , जबकि पत्‍‌नी थी चार बच्चों की मां कैलाशी देवी (45)। मंत्रोच्चार के बीच दोनों भाइयों ने कैलाशी के साथ सात फेरे लिए और उसके गले में अलग-अलग मंगल सूत्र डाले। शादी में दो सिंहोरे का भी प्रयोग हुआ। तीनों पति-पत्‍‌नी के रूप में बेहद खुश हैं। मूंगफली बेच कर जीवन-यापन करने वाले दोनों भाई इस उम्र में भी अविवाहित थे।

कैलाशी संग एक साथ ब्याह रचाने के सवाल पर छोटेलाल व झीनक ने बताया कि दोनों भाइयों में बेहद प्रेम है। अपनी सोच के अनुसार दोनों को एक साझा दूल्हन की तलाश थी, मगर इसके लिए कोई लड़की राजी न होती थी। आखिर पड़ोस के ग्राम पकड़डीहा के राम नारायन वर्मा की विधवा पुत्री और चार बच्चों की मां कैलाशी से रिश्ते की बात चली। पहले तो कैलाशी का पिता अपनी पुत्री का विवाह दोनों भाइयों से करने को राजी नहीं था, मगर कहीं और बात न बनते देख और कैलाशी की सहमति के बाद वह राजी हो गया। एक ही पत्‍‌नी के साथ दोनों कैसे रहेंगे, इस पर दोनों भाइयों का कहना था कि वह महीने में 15 दिन एक की पत्‍‌नी के रूप में और शेष 15 दिन दूसरे की पत्‍‌नी बन कर रहेगी। वहीं, इस बारे में कैलाशी का कहना था कि वह इस शादी से खुश है।

- जागरण में छपी खबर

Sunday 4 November, 2007

प्रताडित पति ने एक करोड़ दान किये

नवम्बर २००७ के दैनिक भास्कर में एक खबर पढ़ कर मज़ा गया

इस साल जुलाई में शादी के महज १४ दिन बाद ही पेशे से लिपिक, फैजाबाद के श्रीकांत पाण्डेय (२९) की इनकी पत्नी से कतिपय मुद्दे पर अनबन हो गयी
पत्नी सावित्री मायके चली गयीपत्नी की वापसी के लिए श्रीकांत ने फैजाबाद की पारिवारिक अदालत में मुकद्दमा दायर किया
जवाब में ससुराल वालों ने दो लाख के जेवर और तीन लाख रूपये नगद मांगने का आरोप लगाते हुए श्रीकांत के खिलाफ ही FIR लिखवा दीइससे आहत श्रीकांत ने अपनी एक करोड़ रूपये मूल्य की पूरी चल-अचल सम्पति प्रधानमंत्री कोष में दान कर दी
श्रीकांत के इस कदम से ससुराल वालों की ............*&^%@#%>< () ... गयीउनके आग्रह पर गोरखपुर पुलिस की सहायता से पति पत्नी के बीच सुलह हो गयी, लेकिन श्रीकांत ने साफ कर दिया कि वे प्रधानमंत्री कोष में दान दी गयी सम्पति वापस नहीं लेंगे
वाह


Saturday 3 November, 2007

दो पाटन के बीच में

एक गुरूमंत्र नज़र आया, आप भी देखिए!

एक नवविवाहित युवक अपनी माँ और पत्नी के बीच बढ़ते मनमुटाव से बेचैन था।
'बेटा, बहू को समझा लेना।' 'देखिए, माँ को समझा दीजिए।' ये संवाद रह-रहकर उसके कानों में गूँजते रहते थे। वह दोनों के बीच सेंडविच बन चुका था। वह किसी एक के पक्ष में बोलकर स्थिति को बदतर नहीं करना चाहता था।


एक दिन उसे एक उपाय सूझा। उसने उस पर अमल करना शुरू कर दिया। जब भी उसकी माँ उसके सामने पत्नी की शिकायत करती तो वह कहता- माँ, आप बेकार ही बहू के पीछे पड़ी हैं। वह तो आपकी तारीफ करते हुए कहती है कि मुझे तो माँ जैसी सास मिली है। और जब रात को पत्नी की रामायण शुरू होती तो उससे कहता- पता नहीं तुम्हें क्या गलतफहमी है। माँ तो तुम्हें अपनी बेटी से भी बढ़कर मानती है और कहती है कि मैं कितनी भाग्यशाली हूँ जो ऐसी बहू मिली। इस तरह वह एक के सामने दूसरे पक्ष की तारीफ करने लगा। इससे धीरे-धीरे सास-बहू के मन में एक-दूसरे के प्रति प्यार उमड़ने लगा। अब तो वह पत्नी को कुछ कहता तो माँ डाँट देती और माँ से कुछ कहता तो पत्नी टोक देती।

-'दो पाटन के बीच में साबुत बचा है कोय', वेबदुनिया पर मनीष शर्मा के लेखांश