भारतीय युवा वर्ग पाश्चात्य संस्कृति की गिरफ्त में इस कदर आ गया है कि आज उसे ज़रा सी बात पर सात फेरों का बंधन तोड़ने में जरा सी भी हिचक नहीं होती। एक युवक ने अपनी पत्नी को महज इसलिए तलाक देने का फैसला कर लिया क्योंकि वह जींस व अन्य पश्चिमी पहनावा पहनने से इनकार कर रही थी। वह तो भला हो अदालत का, जिसने दोनों को ढेरों नसीहतें देकर सुलह के लिए मामले को मध्यस्थता केंद्र के पास भेज दिया। राष्ट्रीय सहारा का समाचार है कि पूनम व पवन (बदले हुए नाम) ने तीन साल पहले प्रेम विवाह किया था लेकिन शादी के बाद दोनों के बीच पहनावे को लेकर विवाद शुरू हो गया। पवन अपनी पत्नी को जींस व अन्य पश्चिमी पहनावा पहनने के लिए जिद करने लगा लेकिन पूनम ने इनकार कर दिया। इसी बात को लेकर दोनों के बीच विवाद बढ़ गया और पूनम अपने मायके चली गई। करीब तीन महीने पहले पूनम को एक नोटिस मिला, जिसमें उसके पति ने तलाक के लिए अदालत में अर्जी दाखिल की थी।
पूनम ने कहा कि तलाक के लिए जो आरोप लगाए गए हैं, वे आधारहीन हैं। उसे यह अधिकार है कि वह किस तरह के कपड़े पहने। उसने यह भी कहा कि यदि इस बात के लिए पवन उसे तलाक देना चाहता है तो इसका मतलब यह है कि उसके पति के दिल में उसके ’प्रेम’ की कोई अहमियत नहीं है। इस मामले में अदालत ने सभी पक्षों को सुनने के बाद पति–पत्नी दोनों को आपस में सुलह करने को कहा। कोर्ट ने दोनों पक्षों को नसीहत देते हुए मामला मध्यस्थता केंद्र में भेज दिया। यहां पर दोनों में सुलह कराने के प्रयास किए जा रहे हैं।
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Friday, 23 May 2008
Thursday, 22 May 2008
हर तीसरा पुरूष घरेलू हिंसा का शिकार
आम तौर पर घरेलू हिंसा की बात आती है तो इसके शिकार के रूप में महिलाओं की ही छवि सामने आती है। लेकिन अमेरिका में हुए एक सर्वे के नतीजों पर नजर डालें तो यह धारणा बदल जाती है। सर्वे के मुताबिक अमेरिका के करीब एक-तिहाई पुरुष घरेलू हिंसा के शिकार है। यह अलग बात है कि महिलाओं के उलट, पुरुषों की यह पीड़ा सामने नहीं आ पाती। इस उत्पीड़न का पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
इस सर्वे में 400 लोगों की राय शामिल की गई। इनसे टेलीफोन पर सवाल-जवाब किए गए। साक्षात्कार में पांच प्रतिशत पुरुषों ने पिछले साल घरेलू हिंसा का शिकार होने की बात स्वीकारी, जबकि 10 फीसदी ने पिछले पांच सालों के दौरान और 29 फीसदी पुरुषों ने जीवन में कभी न कभी घरेलू हिंसा का शिकार होने की बात कबूल की। यह सर्वे राबर्ट जे रीड की अगुवाई में हुआ। रीड का कहना है कि पुरुष प्रधान समाज में घरेलू हिंसा के शिकार पुरुष शर्मिदगी महसूस करते है, क्योंकि समाज में उनको शक्तिशाली माना जाता है। वह बताते हैं कि घरेलू हिंसा के शिकार पुरुषों में युवाओं की संख्या कहीं ज्यादा है। 55 साल से अधिक उम्र वाले लोगों की तुलना में युवाओं की संख्या दोगुनी बताई गई है। रीड ने कहा कि इसका कारण है कि 55 से ऊपर के पुरूष घरेलू हिंसा के बारे में बात करने को तैयार नहीं होते हैं। अध्ययन ने इस भ्रम को भी गलत साबित कर दिया है कि घरेलू हिंसा के शिकार पुरूषों पर इसका कोई गंभीर प्रभाव नहीं पड़ता। शोधकर्ताओं ने पाया कि घरेलू प्रताड़ना का शिकार पुरूषों के मानसिक स्वास्थ्य पर इसका काफी गंभीर प्रभाव पड़ता है।
सर्वे में घरेलू हिंसा के दायरे में धमकाना, अभद्र टिप्पणी, शारीरिक हिंसा-मारपीट या फिर यौन संबंध के लिए मजबूर करने करना आदि को शामिल किया गया था। अध्ययन रिपोर्ट ‘अमेरिकन जर्नल ऑफ प्रीवेंटिव मेडिसिन’ के जून में आने वाले अंक में प्रकाशित किया जाएगा।
इस सर्वे में 400 लोगों की राय शामिल की गई। इनसे टेलीफोन पर सवाल-जवाब किए गए। साक्षात्कार में पांच प्रतिशत पुरुषों ने पिछले साल घरेलू हिंसा का शिकार होने की बात स्वीकारी, जबकि 10 फीसदी ने पिछले पांच सालों के दौरान और 29 फीसदी पुरुषों ने जीवन में कभी न कभी घरेलू हिंसा का शिकार होने की बात कबूल की। यह सर्वे राबर्ट जे रीड की अगुवाई में हुआ। रीड का कहना है कि पुरुष प्रधान समाज में घरेलू हिंसा के शिकार पुरुष शर्मिदगी महसूस करते है, क्योंकि समाज में उनको शक्तिशाली माना जाता है। वह बताते हैं कि घरेलू हिंसा के शिकार पुरुषों में युवाओं की संख्या कहीं ज्यादा है। 55 साल से अधिक उम्र वाले लोगों की तुलना में युवाओं की संख्या दोगुनी बताई गई है। रीड ने कहा कि इसका कारण है कि 55 से ऊपर के पुरूष घरेलू हिंसा के बारे में बात करने को तैयार नहीं होते हैं। अध्ययन ने इस भ्रम को भी गलत साबित कर दिया है कि घरेलू हिंसा के शिकार पुरूषों पर इसका कोई गंभीर प्रभाव नहीं पड़ता। शोधकर्ताओं ने पाया कि घरेलू प्रताड़ना का शिकार पुरूषों के मानसिक स्वास्थ्य पर इसका काफी गंभीर प्रभाव पड़ता है।
सर्वे में घरेलू हिंसा के दायरे में धमकाना, अभद्र टिप्पणी, शारीरिक हिंसा-मारपीट या फिर यौन संबंध के लिए मजबूर करने करना आदि को शामिल किया गया था। अध्ययन रिपोर्ट ‘अमेरिकन जर्नल ऑफ प्रीवेंटिव मेडिसिन’ के जून में आने वाले अंक में प्रकाशित किया जाएगा।
Wednesday, 14 May 2008
शादीशुदा जिंदगी का मजा छीन लेते हैं बच्चे!
अपना परिवार बढ़ाना विवाहित जीवन का महत्वपूर्ण कदम माना जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि बच्चे आने पर पति-पत्नी की जिंदगी और खुशहाल हो जाती है। लेकिन एक अध्ययन से इस पुरानी मान्यता के उलट निष्कर्ष मिल रहे हैं। एक शोधकर्ता ने दावा किया है कि शादीशुदा जिंदगी में बच्चों की गैरमौजूदगी ही खुशहाली का सबब है और बच्चे होने पर सारी खुशियां हवा हो जाती हैं। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रो. डेनियल गिलबर्ट का कहना है कि शादीशुदा जिंदगी का मजा तभी तक है जब तक पति-पत्नी के बीच बच्चा नहीं आता है। पति-पत्नी अपनी खुशी तभी जी पाते हैं जब बच्चे घर से बाहर जा चुके होते हैं।
प्रो. गिलबर्ट का कहना है कि माता-पिता बच्चों पर वक्त और पैसे खर्च करते हैं। वे इसकी वापसी भी चाहते हैं। उनकी यह चाहत इस मान्यता की एक वजह बन जाती है कि बच्चे उनकी जिंदगी खुशगवार बनाते हैं। गिलबर्ट के अनुसार आंकड़े बताते हैं कि शादीशुदा लोग अविवाहितों, तलाकशुदा और अकेले रह रहे लोगों की अपेक्षा ज्यादा सुखी रहते हैं। शादीशुदा लोग न केवल लंबी जिंदगी जीते हैं, बल्कि यौन सुख का लुत्फ कुंवारों की तुलना में ज्यादा उठाते हैं। साथ ही वे प्रति व्यक्ति आय की तुलना में ज्यादा पैसा कमाते हैं। लेकिन जैसे ही उनके बच्चे होते हैं, सारी खुशी गायब हो जाती है। प्रोफेसर के मुताबिक बच्चा होने के बारे में सोचना खुशी देता है, लेकिन जब बच्चे हो जाते हैं तो परेशानियां शुरू हो जाती हैं। आपके वैवाहिक सुख में खलल पड़ने लगता है। यह समस्या तब और बढ़ जाती है जब बच्चे किशोरावस्था में पहुंचते हैं। प्रो. गिलबर्ट ने खुशी और इसके कारण विषय पर एक सेमिनार में ये बातें कहीं हैं।
प्रो. गिलबर्ट का कहना है कि माता-पिता बच्चों पर वक्त और पैसे खर्च करते हैं। वे इसकी वापसी भी चाहते हैं। उनकी यह चाहत इस मान्यता की एक वजह बन जाती है कि बच्चे उनकी जिंदगी खुशगवार बनाते हैं। गिलबर्ट के अनुसार आंकड़े बताते हैं कि शादीशुदा लोग अविवाहितों, तलाकशुदा और अकेले रह रहे लोगों की अपेक्षा ज्यादा सुखी रहते हैं। शादीशुदा लोग न केवल लंबी जिंदगी जीते हैं, बल्कि यौन सुख का लुत्फ कुंवारों की तुलना में ज्यादा उठाते हैं। साथ ही वे प्रति व्यक्ति आय की तुलना में ज्यादा पैसा कमाते हैं। लेकिन जैसे ही उनके बच्चे होते हैं, सारी खुशी गायब हो जाती है। प्रोफेसर के मुताबिक बच्चा होने के बारे में सोचना खुशी देता है, लेकिन जब बच्चे हो जाते हैं तो परेशानियां शुरू हो जाती हैं। आपके वैवाहिक सुख में खलल पड़ने लगता है। यह समस्या तब और बढ़ जाती है जब बच्चे किशोरावस्था में पहुंचते हैं। प्रो. गिलबर्ट ने खुशी और इसके कारण विषय पर एक सेमिनार में ये बातें कहीं हैं।
पतियों के हाथों महिलायें क्यों पिटती हैं? सरकार भी जानना चाहती है
आख़िर सरकार ने मान लिया है कि राष्ट्रीय महिला आयोग, महिलाओं पर लगातार बढ़ रहे जुल्म-ओ-सितम को रोकने में बहुत कारगर भूमिका निभा पाने में नाकाम रहा है। अब, राष्ट्रीय महिला आयोग को सरकार और अधिकार संपन्न बनाएगी। इसके लिए कानून में संशोधन किया जाएगा। साथ ही महिलाओं पर जुल्म की मूल वजहों को जानने और उनके प्रति पुरुषों के नजरिये में बदलाव लाने के मद्देनजर सरकार जल्द ही एक गोलमेज सम्मेलन भी करेगी। इसमें पत्नी पीड़ित पतियों की भी बातें सुनी जाएंगी।
महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री [स्वतंत्र प्रभार] रेणुका चौधरी ने पिछले दिनों राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान एक पूरक प्रश्न के जवाब में सदन को यह जानकारी दी। एक सवाल के जवाब में चौधरी ने कहा कि महिलाओं को लेकर पुरुषों की भी अपनी समस्याएं हैं। साथ ही उनकी सोच में बदलाव लाना भी जरूरी है। इसके बगैर सकारात्मक नतीजे नहीं आ सकते। लिहाजा उनका मंत्रालय एक गोलमेज सम्मेलन कराने की तैयारी कर रहा है। सम्मेलन में महिलाओं के साथ पत्नी पीड़ित पतियों, सामाजिक मनोविज्ञानियों और दूसरे प्रतिनिधियों को शामिल किया जाएगा। मकसद यह भी जानने का है कि पतियों के हाथ महिलाओं की पिटाई की आखिर मूल वजहें क्या हैं?
महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री [स्वतंत्र प्रभार] रेणुका चौधरी ने पिछले दिनों राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान एक पूरक प्रश्न के जवाब में सदन को यह जानकारी दी। एक सवाल के जवाब में चौधरी ने कहा कि महिलाओं को लेकर पुरुषों की भी अपनी समस्याएं हैं। साथ ही उनकी सोच में बदलाव लाना भी जरूरी है। इसके बगैर सकारात्मक नतीजे नहीं आ सकते। लिहाजा उनका मंत्रालय एक गोलमेज सम्मेलन कराने की तैयारी कर रहा है। सम्मेलन में महिलाओं के साथ पत्नी पीड़ित पतियों, सामाजिक मनोविज्ञानियों और दूसरे प्रतिनिधियों को शामिल किया जाएगा। मकसद यह भी जानने का है कि पतियों के हाथ महिलाओं की पिटाई की आखिर मूल वजहें क्या हैं?
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Tuesday, 13 May 2008
पति के बदले चोर घर में घुसा, पत्नी उसके साथ घंटों ...
रात के अंधेरे में ऐसा धोखा किसी के साथ न हो। मलेशिया की एक महिला अपने पति के धोखे में घर में घुसे चोर के साथ ही कई घंटे सोती रही। आधी रात को जब उस महिला को पता चला कि उसके साथ सोया व्यक्ति उसका पति नहीं है तो उसके होश उड़ गए।
मलेशियाई समाचार पत्र द स्टार में प्रकाशित एक खबर के अनुसार यह घटना यहां के पूर्वी प्रांत तेरेंगगानू में घटी। रात के वक्त एक 36 वर्षीय महिला अपने कमरे में गहरी नींद में सो रही थी। इस बीच उसके घर में एक चोर घुस आया। चोर महिला के पति को दूसरे कमरे में गहरी नींद में सोते देख अपने कपड़े उतारकर महिला के बिस्तर में घुस गया।
महिला को हकीकत का पता तब चला जब उसने अपने पति से कुछ पूछा। जवाब में, चोर की आवाज सुनकर उसका माथा ठनका। महिला को यह आवाज अपने पति की आवाज से कुछ अलग लगी। महिला बिस्तर से उठकर चुपके से दूसरे कमरे में गई तो उसने वहां अपने पति को गहरी नींद में सोते पाया। यह देखकर महिला जोर से चिल्लाई। इस शोर से हड़बड़ाकर चोर अपने कपड़े-लत्ते वहीं छोड़कर कुछ कीमती सामान के साथ खिड़की से कूदकर फरार हो गया।
मलेशियाई समाचार पत्र द स्टार में प्रकाशित एक खबर के अनुसार यह घटना यहां के पूर्वी प्रांत तेरेंगगानू में घटी। रात के वक्त एक 36 वर्षीय महिला अपने कमरे में गहरी नींद में सो रही थी। इस बीच उसके घर में एक चोर घुस आया। चोर महिला के पति को दूसरे कमरे में गहरी नींद में सोते देख अपने कपड़े उतारकर महिला के बिस्तर में घुस गया।
महिला को हकीकत का पता तब चला जब उसने अपने पति से कुछ पूछा। जवाब में, चोर की आवाज सुनकर उसका माथा ठनका। महिला को यह आवाज अपने पति की आवाज से कुछ अलग लगी। महिला बिस्तर से उठकर चुपके से दूसरे कमरे में गई तो उसने वहां अपने पति को गहरी नींद में सोते पाया। यह देखकर महिला जोर से चिल्लाई। इस शोर से हड़बड़ाकर चोर अपने कपड़े-लत्ते वहीं छोड़कर कुछ कीमती सामान के साथ खिड़की से कूदकर फरार हो गया।
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