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Monday, 17 March 2008

इंटरनेट से तलाक मान्य नहीं

ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड ने महिला और पुरुषों को समान अधिकार दिए जाने को लेकर कुरान के हिसाब से नया निकाहनामा जारी किया है। इसके अनुसार 'तीन बार तलाक' कहने मात्र से ही तलाक नहीं होगा।

मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड ने ईमेल, एसएमएस, फोन और इंटरनेट से होने वाले तलाक को भी मानने से इनकार किया है तथा कहा है कि अब तलाक के लिए पति और पत्नी को तीन माह का समय दिया जाएगा कि वे इस बीच अपने विवाद खत्म कर लें। यदि इस अवधि में भी विवाद खत्म नहीं होता तो ही तलाक होना माना जाएगा। इन तीन महीने के दौरान पति- पत्नी साथ रहेंगे।

ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड का मानना है कि इस नए निकाहनामे में महिला और पुरुष को बराबर के अधिकार दिए गए हैं। निकाह के साथ ही एक फार्म भी भरा जाएगा जो मैरेज ब्यूरो में जमा होगा तथा इस पर पति-पत्नी और काजी के हस्ताक्षर होंगे। किसी तरह का विवाद होने पर यह एक कानूनी दस्तावेज होगा।

ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाईस्ता अम्बर ने कहा कि यह ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा जारी किए गए मॉडल निकाहनामे से पूरी तरह अलग है। उन्होंने कहा कि कुरान में भी महिलाओं को समान अधिकार दिए जाने की बात कही गई है।

उन्होंने कहा कि मॉडल निकाहनामा उर्दू में है, जबकि इस नए निकाहनामे को उर्दू के साथ हिन्दी में भी जारी किया गया है, ताकि यह सामान्य लोगों की समझ में आ सके या वैसी मुस्लिम महिलाओं को भी जानकारी हो सके, जिन्होंने उर्दू की शिक्षा नहीं ली है।

नए निकाहनामे में शरीयत के हिसाब से शौहर और पत्नी के लिए निकाह के वास्ते ।7 हिदायतें दी गई हैं तथा 8 हिदायतें तलाक के लिए हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण हिदायत जबरन शादी को लेकर है। शरीयत कानून के हिसाब से जबरन शादी को मान्यता नहीं दी गई है। निकाह दोनों पक्षों के अलावा पति और पत्नी की आपसी सहमति से बेहतर भविष्य के लिए है।

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