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Monday, 25 August 2008

मैंने किसी की माँ की... किसी की पत्नी की... नहीं की है।

पिछले दिनों एक ब्लॉगर साथी की अच्छी, सामयिक, सुलझी हुयी पोस्ट उनकी सुपुत्री के सौजन्य से पढ़ने को मिली। दैनंदिन व्यस्ततायों के चलते हर पोस्ट पर दो-चार शब्दों से अधिक वाली टिप्पणी कर पाना सम्भव नहीं होता। लेकिन इस कन्या भ्रूण ह्त्या और दहेज़ जैसी सामाजिक बुराई की ओर इशारा करती पोस्ट पर कतिपय नारी समर्थक सामूहिक ब्लॉग की ओर इशारा करने के साथ-साथ मैंने एक विचार भी रख दिया। हालांकि उसके पहले भी सच की टिप्पणी कुछ इसी तरह की थी

मेरी दी गयी टिप्पणी में बस इतना ही कौतूहल था कि ... कोई जानी-पहचानी प्रतिक्रिया क्यों नहीं आयी! मेरा इतना लिखना भर ही काफी साबित हुया बवाल मचाने के लिए।


पढ़ने वालों को, बिना शब्दों पर ध्यान दिए, ऐसा लगा मानो मैंने आधी सृष्टि को चुनौती दे दी हो कि कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं आयी। फिर क्या था, आंकड़े प्रस्तुत किए गए, द्विवेदी जी को 'प्रेरित' किया गया कि वे पतिनुमा प्राणी को बता दें ... अपशब्दों का प्रयोग करना बंद करें
मैं हैरत में पड़ गया! अपशब्द !? ये अपशब्द मैंने कहाँ लिख दिए? ज्ञात होते हुए भी, जिन शब्दों का मौखिक-लिखित-मानसिक-वैचारिक उपयोग कभी नहीं किया, उनके प्रयोग का आरोप! इन माननीया को यदि कभी, वास्तविकता में अपशब्दों का सामना करना पड़ा जाए तो क्या करेंगीं? हालांकि इनका दावा इनके कमेन्ट फॉर्म पर है कि इसी बात को इंगित करते हुए मेरी दूसरी टिप्पणी इस निवेदन के साथ गयी कि द्विवेदी जी के ब्लॉग पर, इन औचित्यहीन बातों पर तो कोई तुक नहीं। उनसे क्षमा चाहता हूँ। ... अनुरोध है कि वे अपने या मेरे ब्लॉग पर ही अपनी बात रखें।

द्विवेदी जी ने पता नहीं क्या सोचकर उन टिप्पणियों को 'उड़ा' दिया। फिर पता नहीं किन परिस्थितियों में, मूल आलेख से ध्यान हटाते हुए 'उन' टिप्पणियों पर आधारित एक पोस्ट ही लिख मारी। जिसमें एक तरह से सफाई पेश की
और मेरा परिचय कराते हुए उन्होंने मेरी माँ, बच्चों , पत्नी, यहाँ तक कि भगवान को भी लपेट लिया! माता जी से नाराज ...कि जन्म ही क्यों दिया? ...अठारवीं शताब्दी में नम्बर लगाया था, पैदा किया बीसवीं के उत्तरार्ध में... ...जरूरत थी एक संतान की, पैदा हो गईं दो... ...एक पाप कर डाला, ब्याह कर लिया। ...पैदा करने में भगवान जी ने जो देरी की, उस के नतीजे में पाला पड़ा ऐसी पत्नी से जो आकांक्षा रखती है। ...कुछ कहें तो बराबर की बजातीं है।


मैं तो दंग रह गया! सोचने लगा कि क्या अपशब्दों के लिए अंग-विशेष से जुड़े किन्हीं खास शब्दों की जरूरत होती है। उनकी पोस्ट ख़त्म होते-होते लगा कि वे अपने लिए ही कह रहें हों कि भड़ास निकालने वाले को रोकने पर उसे कितनी परेशानी होती है? सोच भी नहीं सकते। सोचने की जरूरत भी नहीं। मैंने सोचना बंद कर लिखना शरू कर दिया।

इसी बीच
द्विवेदी जी की पोस्ट पर अनुराग जी की टिप्पणी आयी क्या आपसे वैचारिक असहमति रखना ही नारी विरोधी होना है? जब आप वहां वैचारिक असहमति जताते है तो बहस मुड जाती है ,अपने मुद्दे से भटक जाती है ... हर मुद्दे को स्त्री ओर पुरूष के चश्मे से नही देखना चाहिए ... तो द्विवेदी जी का जवाब गया ...विमर्श में कोई बुरका पहन कर नहीं आता। जब मैंने सच का ब्लॉग देखना चाहा तो पाया कि वहाँ तो बुर्के की आवश्यकता भी नहीं है।

सच ने फिर एक प्रश्न उछाला: मैंने तो बस इतना पूछा था कि पुरवा के ...लेख पर सब ने एक सुर से सही का निशाँ लगाया क्योकि उसके पिता के ब्लॉग पर ये लेख था। अन्य ब्लॉग पर अगर स्त्री विमर्श होता हैं तो गालियाँ और अपशब्दों की टिप्पणी होती हैं। ये भेद भाव क्यों ??

और उसके बाद आने वाली टिप्पणियाँ कैसी आयीं देखिये
अरविन्द मिश्रा - अब यह विमर्श डेंजर ज़ोन में जा रहा है ...फूट लेना ही बेहतर !
उड़न तश्तरी - बड़ी पेंच है भाई -चलते हैं!!
सिद्दार्थ शंकर त्रिपाठी- पढ़ो और फूट लो भाई... माहौल गर्म है।
ज्ञानदत्त पाण्डेय- यहां बोलना खतरे जान है! :-)

इन सबके बीच जब सच ने मुझे संबोधित कर लिखा कि आप को दिवेदी जी की बेटी की पोस्ट पर आप को कोई ओब्जेक्शन नहीं हुआ। तो तरस भी आया कि उसमें ऐसा क्या था जिस पर पर मैं आपत्ति उठाता? वैसे वैचारिक मतभेद के रूप में अपने विचार तो रख ही दिए थे कि ... आलेख में मूल तौर पर दहेज को कारक माना गया है। लेकिन उन परिवारों में, जहाँ दहेज कोई मायने नहीं रखता, वहाँ भी तो यही हाल है।

जब प्रेमचंद जी का उद्धरण दिया गया कि पुरूष, स्त्री के गुण अपना ले तो देवता बन जाता है और स्त्री, पुरूषों के गुण अपना ले तो कुलटा कहलाती है। तो अफसोस फिर हुया कि हमारे साथी शब्दों पर ध्यान क्यों नहीं देते!
कुलटा बनने/होने और कहलाने में बहुत फर्क है।


इस पोस्ट को लिखते-लिखते द्विवेदी जी की नयी पोस्ट पर नज़र पडी। लगा, कुछ नया पढ़ने को मिलेगा, लेकिन फिर वही राग। समझ में नहीं आया तिलमिला कौन रहा है? जब उनका भी यही सोचना है कि महिलाएँ संऱक्षण के बावजूद भी अपशब्द का शिकार होंगी, तो विलाप किस बात का? जब उन जैसा व्यक्ति भी मेरी सामान्य सी भाषा को, रस्सी को पत्थर पर रगड़-रगड़ कर, अपशब्द ठहराने पर तुला हुया हो तो कुछ कहना ही बेमानी है। हाँ, वे आत्मस्वीकृतिनुमा भाषा का प्रयोग करते हुए कहतें है ...जब वे (महिलायें) हासिल कर चुकी होती हैं, तो अन्य को भी प्रेरित करती हैं। कानून और प्रत्यक्ष ऱूप से पुरुषों को भी उन का साथ देना होता है।

इसी बीच पति-पत्नी ब्लॉग पर बांयीं और के मैसेज बॉक्स में किन्हीं संजय द्विवेदी जी का प्रश्न दिखा 'आपकी बीबी ने अभी तक यह ब्लॉग पढ़ा नही है क्या ?' तो लगा कि एक खौफज़दा पर, बीबी का हौव्वा इतना भारी है कि दूसरों को भी धमका रहे हैं!

इन सभी औचित्यहीन बातों के बाद भी, मुझे अभी भी उम्मीद है कि उनके प्रेरणा स्त्रोत ओर वे, मेरी पहली टिप्पणी पर समय देंगें ओर स्वस्थ विचार-विमर्श के लिए रास्ता खुला रखेंगें। टिप्पणियों को ऐसे ही लें जैसे गुलाब के साथ कांटे, न कि काँटों पर ध्यान देते-देते गुलाब का आनंद खो दें। जिस आलेख पर टिप्पणी के कारण इस पोस्ट के लिखे जाने की नौबत आयी है, नि:संदेह एक अच्छा प्रयास है, आंकडों और तथ्यों की रोशनी में। अच्छे प्रयासों की तारीफ होनी ही चाहिए, लेकिन 'प्रेरित' द्विवेदी जी द्वारा व्यक्तिगत प्रहार किए जाने से पूरा आनन्द ही जाता रहा। मुझे अंदेशा है कि वे मुझे जानते हैं। यदि नहीं तो, कोशिश करूंगा, उन्हें मेरा वास्तविक परिचय न मिल पाये।

संतुलित लेखन के बावजूद, यदि किसी को लगता है कि ये 'हिट बेलो बेल्ट' है तो ध्यान दें कि अधिकतर शब्द मेरे नहीं हैं, आप ही के हैं! मैंने किसी की माँ की... किसी की बेटी की... किसी के परिवार की... किसी की पत्नी की... किसी के भगवान की कोई बात नहीं की है।

20 comments:

Satish Saxena said...

साहसी के साथ साथ आप ईमानदार भी हैं ! यह सुनकर बेहद आनंद आया की कर्मभूमि में लड़ते हुए आपको देखकर कई दिग्गज जिनमे समीर लाल भी शामिल थे "फूट लिए" ! बहुत हंसी आयी आज सुबह सुबह, धन्यवाद ! लड़ते रहिये, आपकी ईमानदारी में, मैं आपका साथ दूँगा ! श्री द्विवेदी जी धीर गंभीर व्यक्ति हैं, मुझे उम्मीद है की वे न्याय व निष्पक्षता को जरूर इज्ज़त बख्शेंगे ! रचना जी, अपने विषय पर बेहद संवेदनशील हैं, कई बार वे पुरुषों के प्रति कुछ अधिक ही कड़वाहट प्रकट करती हैं ? आपको आज पहली बार पढ़ा है, संतुलित लिखते हैं आप मगर इस पोस्ट का हैडिंग अच्छा नही लगा, द्विअर्थीय एवं चीप भाषा से अपने ब्लाग को बचाएं ?
सुझाव अगर ख़राब लगें हों तो माफ़ करियेगा !

Anwar Qureshi said...

ladte raho apne haq ke liye..

Arvind Mishra said...

ब्लॉग चर्चा का आभारी हूँ आपकी यह पोस्ट पढ़ने को मिली .अब से बुकमार्क कर ले रहा हूँ .कुछ लोग बिना पूरी तरह यह प्रमाणित करना नहीं छोडेंगे कि यह सचमुच गोबर पट्टी का ब्लॉग है -उनकी बात न करें ,आप लिखें हम पढ़ते रहेंगे .

पतिनुमा प्राणी said...

सतीश जी, अनवर जी, अरविंद जी,
क्षणिक आवेश में लिखी इस पोस्ट के बहाने आपसे परिचय हुया।
आपकी टिप्पणियों के लिये शुक्रिया।

… और Google analytic के आंकड़ों की मानें तो, सैकड़ों की तादाद में इस पोस्ट पर आने वाले, वे पाठक, जो टिप्पणी करने से 'बचे'
उन्हें भी धन्यवाद।

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

हे पतिनुमा जी,
आपने तो हम अनेक निरीह प्राणियों की आवाज बुलंद कर दी जो इस आक्रामक नारीवादी ब्लॉगरों की विचित्र भाषा के बारे में सोचते तो बहुत हैं, और नारीवादी मुहावरों के नाज़ायज़ प्रयोग से पीड़ित भी महसूस करते हैं, लेकिन बवाल के डर से ओखली में सिर देने से बचते हैं। सोचते हैं कि ब्लॉग पर प्रेम और सौहार्द्र का माहौल ही बना रहे तो बेहतर। इसे बिगाड़ने के लिए तो अनेक महान विभूतियाँ काम कर ही रही हैं।

इसी क्रम में बताता चलूँ कि मेरे ब्लॉग सत्यार्थमित्र पर कुछ कचोटते प्रश्न भी इन बुद्धिजीवियों के उद्‍गारों की प्रतीक्षा कर रहे हैं लेकिन एक खास वर्ग का सन्नाटा मुझे हैरत में डाल रहा है।

Anonymous said...

आपकी पहल के लिये धन्यवाद। हिन्दी ब्लग परिवार मे सह्बी महिलाए इज्जत पाती है और उसकी वे हकदार भी है। एक बडा परिवार है। पर एक महिला जिसकी किसी से नही जमती, ने आतंक मचाया है। लोग उसे कोसते है तो वह कहती है कि आप नारी को गाली दे रहे है। यह गलत है। कितने अच्छे से चोखेर बाली ब्लाग चलता है। स्वस्फूर्त टिप्पणियाँ आती है। यह बहुत ही सशक्त प्रयास है। मीनाक्षी और अनिता जैसी उम्दा नारी ब्लागर है। उनका तो कभी किसी से पंगा नही होता। रचना जी को इस बात को अब समझना होगा। शालीनता जरुरी है। उनकी हरकते मुझे उन आइटम गर्ल की याद दिलाती है जो अच्छा हो या बुरा कैसे भी सुर्खियो मे रहना चाहती है। रचना जी के अन्दर की कवियित्री जब सामने आती है तो असीम संतोष होता है। शायद वे अपने व्यापार से परेशान है या अकेले होने के गम से। इसलिये कही और का गुस्सा यहाँ ब्लाग पर बरसता है। हम सब उनकी मदद करे तो निश्चित ही हम उनके अच्छे पक्ष को देख पायेंगे।

पतिनुमा प्राणी said...

Anonymous जी,
आप पधारे, धन्यवाद।
.
लेकिन, मेरे व्यक्तिगत ख्याल से, यदि आपकी पहचान होती, तो ज़्यादा अच्छा होता। बेशक कैसी भी पहचान हो।
.
व्यक्तिगत प्रहार से बचें। दूसरा गाल आप तभी आगे कर पांयेंगे, जब कोई पहल कर, आपके पहले गाल पर मारे।
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और मुन्नाभाई भी कहते हैं कि बापू ने सिरफ दो तमाचों की बात की थी, उसके बाद की नहीं!
.
आप पुन: आयेंगें, आशा है।

Satish Saxena said...

भाई अनाम जी !
हो सकता है रचना जी की कोई बात आपको बेहद ख़राब लगी हो तो भी आपके कमेंट्स में निर्दयता झलकती है जो कि स्वस्थ माहौल के लिए अहितकर है ! आप उनकी आलोचना करने के पूरे हक़दार हैं मगर "उसे' के जगह "उन्हें" प्रयोग करेंगे तो आपकी ब्लाग जगत में तारीफ़ ही होगी, रचनाजी की कविताओं कि तारीफ आप ख़ुद ही कर रहे हैं, और मैं उनकी कुशाग्रता का प्रशंसक हूँ ! हाँ यह सच है कि वे पूरी पुरूष जाति के ही खिलाफ चलीं जाती हैं ! मगर हमें अपनी बात को उचित तौर पर रखकर, समझाने का प्रयत्न करना चाहिए, और साथ ही उनकी सहनशक्ति और हिम्मत की तारीफ भी !
हो सकता है आपको मुझ पर भी गुस्सा आए कि मैं जबरदस्ती आपका सलाहकार बनने कि कोशिश कर रहा हूँ, अगर ऐसा लगे तो अपने से उम्र में बड़ा समझ कर माफ़ कर देना ! और अगर अच्छा लगे तो आप अपनी मुहीम जारी रखें क्योंकि आप ख़ुद समाज का भला ही कर रहे हैं, केवल उपरोक्त अनुरोध पर ध्यान देने कि कृपा करें ! आदर सहित

Anonymous said...

"रचना जी को इस बात को अब समझना होगा। शालीनता जरुरी है। उनकी हरकते मुझे उन आइटम गर्ल की याद दिलाती है "
shaalintaa ki paribhasha kyaa haen ??
"शायद वे अपने व्यापार से परेशान है या अकेले होने के गम से।"
aap ki tarah apni pehchaan nahin chupaatii is liyae blog par sab vivran uplabdh haen maere baarey
aap khud kyaa haen ? ek darpok , asahaay mard / pruush jo kewal mujeh vyaktigat rup sae itme girl kaeh kar insult karnaa chahtaa haen ??
reh gayee baat surkhiyon mae rehney kii so aap aur pati numa pranii jaesae log bina mera naam liyae ek post to banaa nahin saktey
japan gaye thee abhi lauti hun , vyaapar bahut badhiyaa chal rahaa haen , akelaapan kae liyae aap jaesae anaam napunsakoo ki zarurat nahin haen
aur pati numa pranii ji
aaap ke baarey mae ne kahi bhi aap ke naam sae koi post nahin banaaii , naa aap kae liyae apshbd likhey , vaaecharil mathbhedh hota haen , lekin aap nae kaese aur kyun anam ki tippani ko publish kiyaa
aap kaa post aur aap post kaa title aurr phir is kament ko publish karna dono viprit baatey haen
kyaa haen aap ki mansiktaa ?
agar anm ka kaemnt hataye jo ki aap ko hataana chaheyae to is kament ko bhi hataa dae

Anonymous said...

मेरे बारे में
पतिनुमा प्राणी
45 वर्ष का ज़वान, कर्मठ सरकारी कर्मचारी, व्यस्क ज़ुडवां संतानों का पिता, महत्वाकांक्षी पत्नि का पति


Great! Achha laga padhkar aapke baare mein, lekin aap khud sochiye kya aap ek achhe insan bhi hein? Manav roop mein to hamsba janm lete hein lekin agar manaviyata nahi ho to manav nahi kahlate hein. Main nahi kahungi ki aap kya kar rahe hein ya is umra mein kya likh rahe hein, kyunki main janti hun bhasha ka gyan aapko hai, aapki bhi patni hai aur bhale hi wo ghar mein baithi hon, lekin aapke paroshi chahe to unper koi bhi ilzam bina soche laga sakte hein...kyunki apa office jate hein. Aapko kya pata jaise aapne Rachna ji ko item girl kaha waise ham bhi aapko kothe per jane wale ya aapki patni ko call girl kah dale? Koun janta hai sachchai kya hai aur kitna aap sach hein.

Isliye kripiya aap shabdon ko sochkar use kijiye. Aapko maanhani karne ka koi right nahi mila hai aur Rachnaji chahe to aap per manhani ka case bhi kar sakte hein. Ise dhamki na samajhiyega bus vichar samajh padhiyega.

Mujhe pata hai aap ye aavesh mein aakar likhe hein lekin aapka post padhkar achha nahi laga. Main aapse kafi choti hun isliye aapse bahut kuch sikhne ki ummeed karti hun. Aap sabsekuch sikh kar samaz ke liye kuch karne ki chah hai. Isliye aap mere tippanni ko anyatha na len.

rgds.
www.rewa.wordpress.com

Anonymous said...

Ye comment maine apako isliye likha hai ki aapne ANONYMOUS ke tipanni ko pulish kiya hai. Aapka farz banta tha ki us tipanni ko publish akrne ke bajay delete karna. Kise pata ye anonymous koun hai...ye khud aap bhi ho sakte hein! Isliye maine ye comment aapko kiya hai aur anonymous ji to padh hi lenge bhatakate aate huye.

Anonymous said...

EK AURAT KI BAESAAKHI LAGAA KAR APNAA BLOG CHALAA RAHAE HO MUNAA BHAI

Satish Saxena said...

पति नुमा प्राणी जी !
व्यक्तिगत गाली गलौज के मध्य खड़ा होना भी उचित नहीं लगता ! मैंने आपके पुराने पोस्ट नहीं पढ़े, मगर आप लोगों के कमेंट्स से लगता है कि रंजिश काफ़ी पुरानी है !
अनाम जी ! रचनाजी को "एक औरत" जैसे शब्दों का उपयोग क्षद्म वेश रख कर किसी के ऊपर कीचड़ फेंकना ही है ! किसी भी सभ्य समाज में नारी का अपमान क्षम्य नही किया जा सकता ! आप शायद भूल रहे हैं कि हमारे घरों में भी कई "औरतें" हैं ! मुझे उम्मीद भी नही थी कि जहाँ पर मैं इसे नारी स्वतन्त्रता पर बहस मान रहा था, वहा का कोई स्तर ही नही है ! अगर आपमें परिवार और भारतीयता के प्रति जरा भी सम्मान का भाव है , तो आपको इस अशिष्टता के लिए रचना जी से क्षमा मांगनी चाहिए ! और अगर आपने ऐसा नही किया तो मैं जहाँ बहस में आपको ( पुरूष पक्ष ) साथ देने की बात कर रहा था, अपने शब्द बापस लेता हूँ, और भविष्य में कोशिश करूंगा कि इस प्रकार के ब्लॉग की कीचड़ से अपने आपको बचाऊँ !

Anonymous said...

मैं तो अपना नाम खोल दूँ, पर पतिनूमा प्राणी जी तो परदे के बाहर आएँ।

Anonymous said...

@Satish sexenaji,

Bus yahi karan hai ki main hindi bloggers ke blog nahi padhti hun. Kyunki yahan log standard girakar baat karte hein. Aur kichd mein kankad feko to khud hi per padta hai...isse achha hai kichad se hi dur raho.


rgds

Anonymous said...

sharm karo sharm karo dub maro dub maro

Satish Saxena said...

अनाम जी एवं पतिनुमा...जी !
वाकई हमें डूब मरना चाहिए जहाँ आप जैसी शख्शियत मौजूद हो ! आप जैसे सज्जनों के होते हुए भी, हम इस संगति में, बहस में शामिल हैं, तो सज़ा और गालियाँ तो मिलनी ही चाहिए, एक नया सबक देने के लिए आपका भी धन्यवाद !
सतीश

Anonymous said...

satish saxena ji evam smrati ji!
yah bada ganda blog hai! aur yah sab apne ko importence dene ko yah patunuma kar raha hai ! in chhichhori bato se log ise padenge ! patinuma aur anonymous ek hi aadmi hai! yahan apko tippadi nahin deni chahiye ! is gandi harkat ke liye inhe doob marna chahiye !

पतिनुमा प्राणी said...

27 अगस्त वाले Anonymous जी ने तारीफ भी की है और आलोचना भी, बस गड़बड़ यह हो गयी कि 'आइटम गर्ल' शब्द का प्रयोग कर लिया। लेकिन देखा जाये तो उन्हें 'आइटम गर्ल' की याद आयी, किसी को आइटम गर्ल तो नहीं कहा? वैसे ही जैसे मुसीबत के समय किसी से सहायता मिलने पर हम उसे भगवान मान बैठते हैं या 'भगवान की याद आ गयी' कहते हैं। किसी चेहरे हो देखकर 'चुसा हुया आम' या 'बन्दर सी शकल' कह बैठते हैं। इसका मतलब वह व्यक्ति, भगवान, बन्दर या चुसा आम हो गया!
बाकी, उनकी बातों पर ऐतराज तो मैने भी तुरंत जताया था।
रचना जी ने लिखा …pati numa pranii jaesae log bina mera naam liyae ek post to banaa nahin saktey
कोई मुझे बताये कि मैने अपनी किसी पोस्ट में 'उनका' नाम कहां लिया? वैसे भी उनके नाम का कोई पेटेंट है क्या? जहाँ मुझे creativity का हिंदी अनुवाद लिखना होगा तो क्या लिखूँ? इसके अलावा, पोस्ट बनाने लायक समय नहीं है मेरे पास।
रचना जी ने उलाहना भी दिया कि aap nae kaese aur kyun anam ki tippani ko publish kiyaa, तो इसका जवाब यह है कि अपनी टिप्पणी देकर जब तक दुबारा नज़र डालता तब तक तो देर हो चुकी थी। यदि समय पर रचना जी की आपत्ति दिख जाती तो कुछ करता। अब हटाना प्रासंगिक नहीं क्योंकि तब तक smriti मुझ पर आरोप लगा चुकीं थीं कि aapne Rachna ji ko item girl kaha …aap shabdon ko sochkar use kijiye। निश्चित तौर यह सरासर झूठा आरोप था। एक नया आरोप फिर आया EK AURAT KI BAESAAKHI LAGAA KAR APNAA BLOG CHALAA RAHAE HO।

एक सीधी सी बात कह रहा हूँ कि मै अनाम रह कर कभी भी, कहीं भी, टिप्पणी नहीं करता। क्योंकि मैं कुंठित नहीं।

वैसे benam महाशय की टिप्पणी, दिल्ली से आयी। sharm karo sharm karo वाले Anonymous की टिप्पणी, गाज़ियाबाद से आयी
मैं तो अपना नाम …वाले Anonymous की टिप्पणी, जयपुर से आयी। इन सभी के आई-पी पते सहित अन्य कई जानकारियां उपलब्ध हैं, जो मेरे सहयोगियों के ब्लॉग पर, चेहरे सहित आने वाले इन मानवों की जानकारियों से हूबहू मिलती हैं। ये क्या नाम बतायेंगे, मैं ही प्रमाण सहित जग जाहिर कर सकता हूँ इनका चेहरा!

Anonymous said...

mujeh lagtaa haen aap ko personal aakshep vaali sab tipaani hataa daeni chaheye
aap ki post sahii haen par pehlae annonymous kaemnet ki vajeh sae divert ho gayee wo aur us krm sae realted sab hataa dae to aapki baat mae dam lagegaa