महिला के पक्ष में जारी एक फतवे में कहा गया है कि यदि कोई शख्स अपनी पत्नी के साथ नहीं रह रहा है और पत्नी को लगता है कि अपनी स्वाभाविक जरूरतों के लिए मैं 'पाप' में घिर सकती हूं, तो वह तलाक यानी 'खुला' ले सकती है।
भारत की विख्यात इस्लामी संस्था दारुल उलूम देवबंद की फतवा जारी करने वाली इकाई दारुल इफ्ता ने हाल ही में एक महिला की फरियाद पर यह फतवा जारी किया है। केरल की रहने वाली इस महिला की शादी वहीं के व्यक्ति से हुई जो दुबई में कार्यरत है। पत्नी ने आरोप लगाया कि शादी के कुछ ही दिन बाद पति और उसके घर वाले उसे पीटने और कई तरह के दुर्व्यवहार करने लगे। पत्नी ने इस पर तलाक की मांग की तो वह दुबई भाग गया।
नवभारत टाइम्स की खबर के अनुसार, बरसों से बेबस जिंदगी जी रही इस महिला ने पिछले महीने दारुल इफ्ता में गुहार लगा कर पूछा कि विदेश भाग गए जालिम पति से कैसे छुटकारा पाकर नया जीवन शुरू करे। दारुल इफ्ता ने इस पर दिए फतवे में कहा कि किसी महिला को 2 परिस्थितियों में निकाहनामे को रद्द कर पति से 'खुला' लेने या उसे तलाक देने पर बाध्य करने का अधिकार है। पहला यह कि अगर पति अपनी पत्नी को जीवन यापन का खर्चा नहीं देता है और दूसरा यह कि यदि पत्नी को यह डर महसूस होता हो कि पति के दूर रहने से वह अपनी स्वाभाविक शारीरिक जरूरतों के लिए ''पाप'' में घिर सकती है। पति से 'खुला' लेने या उसे तलाक के लिए मजबूर करने के लिए ये 2 कारण ही काफी हैं।
'खुला' और तलाक में मुख्य अंतर यह है कि तलाक देने पर पुरुष को उसे गुजारा भत्ता देना होगा जबकि 'खुला' में वह इसके बाध्य नहीं है क्योंकि पत्नी संबंध विच्छेद के लिए पहल करती है। फतवे में कहा गया कि ऐसी सूरत में दूर रह रहा पति यदि तलाक देने से कतरा रहा हो तो पत्नी अपना मामला शरिया पंचायत में ले जा सकती है। पंचायत शिकायत सही पाने पर पति को तलाक देने के लिए बाध्य कर सकती है। इस पर भी यदि वह ऐसा नहीं करता है तो शरिया पंचायत 'मलिकी मसलक' के तहत निकाह को रद्द कर महिला को पति से मुक्ति दिला सकती है।
गूगल की मदद
Tuesday, 12 February 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment