वर से लिए गए वचन
- ग़ृहस्थ जीवन में सुख-दुःख की स्थितियां आती रहती हैं, लेकिन तुम हमेशा अपना स्वभाव मधुर रखोगे।
- मुझे बताये बिना कुआँ - बावड़ी - तालाब का निर्माण, यज्ञ-महोत्सव का आयोजन और यात्रा नहीं करोगे।
- मेरे व्रत, दान और धर्म कार्यों में रोक-टोक नहीं करोगे।
- मेहनत से जो कुछ भी अर्जित करो, मुझे सौंपोगे।
- मेरी राय के बिना कोई भी चल-अचल सम्पति का क्रय-विक्रय नहीं करोगे।
- घर की सभी कीमती चीजें, गहने, आभूषण मुझे रखने के लिए दोगे।
- माता-पिता के किसी आयोजन में मेरे जाने पर आपत्ति नहीं करोगे।
- मेरी अनुपस्थिति में कहीं नहीं जायोगी।
- विष्णु, वैश्वानर, ब्राह्मण, मेहमान और परिजन सभी साक्षी हैं कि मैं तुम्हारा हो चुका हूँ।
- मेरे मन में तुम्हारा मन रहे। तुम्हारी बातों में मेरी बातें रहें और मुझे अपने ह्रदय में रखोगी
- मेरी इच्छायोँ और आज्ञायोँ का निरादर नहीं करोगी और बडों का सम्मान करोगी।
- हमेशा मेरी विश्वसनीय बनी रहोगी।
No comments:
Post a Comment