पहले तो मुझे लगा कि इस ब्लॉग के शीर्षक में एक शब्द और जोड़ दूँ - 'प्रेम' या 'प्यार', फिर लगा कि नहीं जिस ख़बर की चर्चा करने जा रहा हों, वह बिरली ही सामने आ पाती हैं।
कहते हैं कि प्यार की कोई उम्र नहीं होती। लेकिन बात अगर कॉलेज के दिन हुए प्यार की हो, तो लोग अक्सर इसे संजीदगी से नहीं लेते। अक्सर कॉलेज के दिनों के प्यार को बचकाना और दिल बहलाना का जरिया माना जाता है। लेकिन 23 वर्षीय सनी पवार के लिए जिन्दगी का दूसरा पर्याय ही प्यार बन चुका है।
दरअसल, सनी की प्रेमिका आरती मकवान डेढ़ साल पहले गंभीर दुर्घटना का शिकार हो गई थी और तब से कोमा (बेहोशी की नींद) में है। सनी कहते हैं कि आरती ढाई साल पहले एक आत्मनिर्भर और खुशमिजाज वाली लड़की थी, लेकिन आज आरती को 24 घंटे देखभाल की जरूरत है।
सनी कहते हैं कि, “मैंने आरती के साथ दुर्घटना के पहले सवा साल और बाद में सवा साल बिताए हैं। पहले के 15 महीनों में आरती के साथ गुजारे गए वक्त ने आज मुझे इतनी प्रेरणा और उसकी देखभाल करने की हिम्मत दी है”।
सनी दुर्घटना के पहले पढ़ाई करता था लेकिन आरती की देखभाल के लिए उसने पढ़ाई भी छोड़ दी। उसके खान-पान की देखभाल से लेकर रोजमर्रा की जरुरतों का ख्याल रखने वाला सनी फुर्सत के क्षणों में उसके साथ बातें भी करता है।
आरती की मां भारती मकवान एक आम प्रेमी से काफी आगे निकल चुके इस लड़के की कर्तव्यनिष्ठा और सेवा भावना पर अचंभित हैं।
भारती कहती हैं कि, “वह हमारे घर का पुरुष सदस्य है और शादी से पहले ही मेरी बेटी का भरपूर ख्याल रख रहा है। सनी उसका प्रेमी ही नहीं, बल्कि पिता भी है”।
इन दिनों वित्तीय संकट और गहरे तनाव से गुजर रहा सनी आरती के बिस्तर के सामने की दीवार पर कविताएं और सकारात्मक संदेश लिखे हुए पन्ने चिपकाता रहता है।
भले ही यह जोड़ा शादीशुदा नहीं हो, लेकिन इतने विषम परिस्थितियों के बावजूद एक दूसरे का साथ दे रहा है। आरती के प्रति सनी की भावनाएं और सेवा भाव ने यह साबित कर दिया है कि प्रेम में प्रतिदान नहीं होता।
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Saturday, 16 February 2008
Tuesday, 12 February 2008
मिल सकता है तलाक, 'पाप' की आशंका पर
महिला के पक्ष में जारी एक फतवे में कहा गया है कि यदि कोई शख्स अपनी पत्नी के साथ नहीं रह रहा है और पत्नी को लगता है कि अपनी स्वाभाविक जरूरतों के लिए मैं 'पाप' में घिर सकती हूं, तो वह तलाक यानी 'खुला' ले सकती है।
भारत की विख्यात इस्लामी संस्था दारुल उलूम देवबंद की फतवा जारी करने वाली इकाई दारुल इफ्ता ने हाल ही में एक महिला की फरियाद पर यह फतवा जारी किया है। केरल की रहने वाली इस महिला की शादी वहीं के व्यक्ति से हुई जो दुबई में कार्यरत है। पत्नी ने आरोप लगाया कि शादी के कुछ ही दिन बाद पति और उसके घर वाले उसे पीटने और कई तरह के दुर्व्यवहार करने लगे। पत्नी ने इस पर तलाक की मांग की तो वह दुबई भाग गया।
नवभारत टाइम्स की खबर के अनुसार, बरसों से बेबस जिंदगी जी रही इस महिला ने पिछले महीने दारुल इफ्ता में गुहार लगा कर पूछा कि विदेश भाग गए जालिम पति से कैसे छुटकारा पाकर नया जीवन शुरू करे। दारुल इफ्ता ने इस पर दिए फतवे में कहा कि किसी महिला को 2 परिस्थितियों में निकाहनामे को रद्द कर पति से 'खुला' लेने या उसे तलाक देने पर बाध्य करने का अधिकार है। पहला यह कि अगर पति अपनी पत्नी को जीवन यापन का खर्चा नहीं देता है और दूसरा यह कि यदि पत्नी को यह डर महसूस होता हो कि पति के दूर रहने से वह अपनी स्वाभाविक शारीरिक जरूरतों के लिए ''पाप'' में घिर सकती है। पति से 'खुला' लेने या उसे तलाक के लिए मजबूर करने के लिए ये 2 कारण ही काफी हैं।
'खुला' और तलाक में मुख्य अंतर यह है कि तलाक देने पर पुरुष को उसे गुजारा भत्ता देना होगा जबकि 'खुला' में वह इसके बाध्य नहीं है क्योंकि पत्नी संबंध विच्छेद के लिए पहल करती है। फतवे में कहा गया कि ऐसी सूरत में दूर रह रहा पति यदि तलाक देने से कतरा रहा हो तो पत्नी अपना मामला शरिया पंचायत में ले जा सकती है। पंचायत शिकायत सही पाने पर पति को तलाक देने के लिए बाध्य कर सकती है। इस पर भी यदि वह ऐसा नहीं करता है तो शरिया पंचायत 'मलिकी मसलक' के तहत निकाह को रद्द कर महिला को पति से मुक्ति दिला सकती है।
भारत की विख्यात इस्लामी संस्था दारुल उलूम देवबंद की फतवा जारी करने वाली इकाई दारुल इफ्ता ने हाल ही में एक महिला की फरियाद पर यह फतवा जारी किया है। केरल की रहने वाली इस महिला की शादी वहीं के व्यक्ति से हुई जो दुबई में कार्यरत है। पत्नी ने आरोप लगाया कि शादी के कुछ ही दिन बाद पति और उसके घर वाले उसे पीटने और कई तरह के दुर्व्यवहार करने लगे। पत्नी ने इस पर तलाक की मांग की तो वह दुबई भाग गया।
नवभारत टाइम्स की खबर के अनुसार, बरसों से बेबस जिंदगी जी रही इस महिला ने पिछले महीने दारुल इफ्ता में गुहार लगा कर पूछा कि विदेश भाग गए जालिम पति से कैसे छुटकारा पाकर नया जीवन शुरू करे। दारुल इफ्ता ने इस पर दिए फतवे में कहा कि किसी महिला को 2 परिस्थितियों में निकाहनामे को रद्द कर पति से 'खुला' लेने या उसे तलाक देने पर बाध्य करने का अधिकार है। पहला यह कि अगर पति अपनी पत्नी को जीवन यापन का खर्चा नहीं देता है और दूसरा यह कि यदि पत्नी को यह डर महसूस होता हो कि पति के दूर रहने से वह अपनी स्वाभाविक शारीरिक जरूरतों के लिए ''पाप'' में घिर सकती है। पति से 'खुला' लेने या उसे तलाक के लिए मजबूर करने के लिए ये 2 कारण ही काफी हैं।
'खुला' और तलाक में मुख्य अंतर यह है कि तलाक देने पर पुरुष को उसे गुजारा भत्ता देना होगा जबकि 'खुला' में वह इसके बाध्य नहीं है क्योंकि पत्नी संबंध विच्छेद के लिए पहल करती है। फतवे में कहा गया कि ऐसी सूरत में दूर रह रहा पति यदि तलाक देने से कतरा रहा हो तो पत्नी अपना मामला शरिया पंचायत में ले जा सकती है। पंचायत शिकायत सही पाने पर पति को तलाक देने के लिए बाध्य कर सकती है। इस पर भी यदि वह ऐसा नहीं करता है तो शरिया पंचायत 'मलिकी मसलक' के तहत निकाह को रद्द कर महिला को पति से मुक्ति दिला सकती है।
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